Parda Shayari In Hindi : औरत के तकद्दुस की हद यह है की फरिश्तों से भी उसकी बनावट का पर्दा रखा गया, और पहली औरत उस मर्द की पसली से पैदा की जिसकी वह मनकूहा कहलाई. औरत जब बेपर्दा होकर बाहर निकलती है फिर वह औरत नहीं बल्कि बहुत सी बुरी नजरों के लिए तफरी की चीज़ बन जाती है.
वास्ता खुदा का पर्दा ना करनक़ाब कर पर चेहरे पर चेहरा ना कर
ख़ुद 🤗न छुपा सके वो अपना चेहरा🧕 नक़ाब में, बेवज़ह हमारी आँखों👀 पे इल्ज़ाम 🧐लग गया।
जो देख लेती हैं तेरी आँखों में वहम का पर्दा,मेरी नज़रें शिकायत अब खुद से नहीं करती!
तीर की जाँ है❤️ दिल दिल❤️ की जाँ तीर🤩 है तीर को यूँ न खींचो🤗😉 कहा मान लो
कपड़े 🌈से तो परदा 🙈होता है साहब !! हिफ़ाज़त तो निग़ाहों👀 से होती है !!
गर नफ़रत ही थी मंज़िल,तो ये इश्क़ किस लिएतुझे औरों सा बनना था तो फ़िर ये पर्दा किस लिए..!
कैसे बयान 🗣️करें सादगी 🧕अपने महबूब की, पर्दा 🥷हमीं से था मगर 🤩नजर भी हमीं पे थी।
Parda In Islam In Hindi : इस्लाम ने समाज को बुराइयों से बचाने का हर मुमकि इंतेजाम किया है और अच्छे अखलाक और बेहतर आदाब और औरतो के लिए Parda In Islam क
अपने पर्दे 🥷का रखना है गर कुछ भरम🤗 सामने आना जाना मुनासिब☺️ नहीं
वो अपने चेहरे 🧕में सौ आफताब🤩 रखते हैं इसीलिये तो वो रुख 🤩पे नक़ाब🧕 रखते हैं
रुख़ 🤩से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया 😉बस अभी रंग-ए-महफ़िल 🧕बदल जाएगा
हया बड़ी दौलत है, और जो औरत इस दौलत को संभाल-संभाल कर चलती है कभी कंगाल नहीं होती ना हुस्न के मामले में और ना कशिश के मामले में.
ज़ब्त-ए-ग़म का अब और उस से वा’दा🤗 न हो वर्ना बीमार 🤒का दम 🤤निकल जाएगा
बात सिर्फ छोटे से हिजाब और अबाया के उस टुकड़े कि नहीं बात तो उस मोहब्बत की है जो तुम्हारे रब को तुमसे है.
ये ख़बर🗣️ किस को थी आतिश-ए-गुल❤️ से ही तिनका तिनका नशेमन😉 का जल 🔥जाएगा
सर पर दुपट्टा रखने से औरत अल्लाह की रहमत के साए में रहती है.
इतने हिजाबों 🧕पर तो ये आलम 🤩है हुस्न का, क्या हाल हो जो देख लें पर्दा🧕🤗 उठा के हम।
तीर खींचा तो दिल❤️ भी निकल आएगा🤗 दिल ❤️जो निकला तो दम भी निकल😘🤩 जाएगा
जो. फितने का कारण बनती है। इस लिए मर्द और औरतों को निगाह नीची रखने का हुक्म दिया गया है।
कैसे बयान 🗣️करें सादगी अपने 🤗😘महबूब की, पर्दा 🥷हमीं से था मगर नजर👀 भी हमीं🤩 पे थी।
औरत पर हया की चादर इस तरह जंचती है जिस तरह कुरान पाक पर गिलाफ़.
एक मुद्दत 🤗हुई उस को रोए 🥲हुए एक अर्सा हुआ मुस्कुराए🤩 हुए
इस्लाम ने औरत को कैद नहीं किया बल्कि उसे हवस परस्तों की नज़रों से महफूज़ किया है.
लोगों का दिल बुराइ से Paak Saaf रह सके। इस में. शहवत और खवाहिशात को न भटकाया जाए। इस्लाम ने शहवत को भटकाने वाली चीजों पर पाबंदी लगाई है
🥷पर्दा-ए-लुत्फ़ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम❤️ क्या कहिए, हाय ज़ालिम 🤗तेरा अंदाज़-ए-करम 😉क्या कहिए।
पर्दा 🥷तो होश 🤩वालों से किया जाता है , बेनकाब 🧕चले आओ हम तो नशे🥃 में है..!!
है आदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल हम अंजुमन समझते हैं ख़ल्वत ही क्यूँ न हो
औरत जब बेपर्दा होकर बाहर निकलती है फिर वह औरत नहीं बल्कि बहुत सी बुरी नजरों के लिए तफरी की चीज़ बन जाती है.
औरत के तकद्दुस की हद यह है की फरिश्तों से भी उसकी बनावट का पर्दा रखा गया, और पहली औरत उस मर्द की पसली से पैदा की जिसकी वह मनकूहा कहलाई.
ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर-सनम निकले
पर्दा गिर गया तमाशा ख़त्म हो गयाआपने ताली नहीं बजाई लगता हैं अभी वक़्त नहीं हुआ
लोग समझे थे ये इंक़िलाब😉 आते ही नज़्म-ए-कोहना 🧕चमन का बदल🤩 जाएगा
क्या ये कम 🤗है मसीहा 🙏के रहने ही से मौत🥺 का भी इरादा 🤗बदल जाएगा
एक वहशी 🤗से ये छेड़ अच्छी 😉नहीं क्या करोगे अगर ये मचल 😘जाएगा
सलीका पर्दे 🧕का भी अजीब🤔 रखा हैं, निगाहें 👀जो कातिल😉 हैं, उन्हें ही खुला🧕 रखा है..
मेरे चुपी का इस तरह फायदा न उठा ऐ मुसाफिर..जिस दिन ख़ामोशी का पर्दा उठेगा..तबाही मच जायेगी.......😉
हमारा🤗😉 क़त्ल करने की उनकी साजिश🤩 तो देखो, गुजरे 🤗जब करीब से तो चेहरे🥷 से पर्दा🧕 हटा लिया।
है जो बेहोश 😇वो होश में आएगा गिरने😉🤩 वाला है जो वो सँभल🤗 जाएगा
बेहयाई की ठंडक से पर्दे की गर्माइश बेहतर है.
बे-पर्दा सू-ए-वादी-ए-मजनूँ गुज़र न कर हर ज़र्रा के नक़ाब में दिल बे-क़रार है
तुम तसल्ली न🤗 दो सिर्फ़ बैठे रहो 🕧वक़्त कुछ मेरे मरने😉🤗 का टल जाएगा
पर्दा-ए-लुत्फ़ 🤩में ये ज़ुल्म-ओ-सितम🤗 क्या कहिए, हाय ज़ालिम 🤗तेरा अंदाज़-ए-करम🧕😉 क्या कहिए।
सरक😉 गया जब उसके रुख से पर्दा🤩🧕 अचानक, फ़रिश्ते 🙏भी कहने🗣️ लगे काश हम भी इंसान🤵 होते।
सलीका तुमने परदे🙈 का बड़ा अनमोल🧕 रखा है, यही कातिल निगाहें😉👀 हैं इन्हीं को खोल🤩 रखा है।
हमारा क़त्ल 😉करने की उनकी साजिश🤩 तो देखो, गुजरे जब करीब😉😘 से तो चेहरे🤩 से पर्दा हटा लिया🧕
एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता रफ़्ता एक तरफ़
जब से उसने खींचा है खिड़की का पर्दा एक तरफ़ उसका कमरा एक तरफ़ है बाक़ी दुनिया एक तरफ़
उसकी आँखों ने मुझसे मेरी ख़ुद्दारी छीनी वरना पाँव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़
मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता उसने सहरा एक तरफ़ रक्खा और दरिया एक तरफ़
मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बाँटा है बचपन से रखता आया हूँ तेरा हिस्सा एक तरफ़
यूँ तो आज भी तेरा दुख दिल दहला देता है लेकिन तुझ से जुदा होने के बाद का पहला हफ़्ता एक तरफ़