Murshid Shayari In Hindi : मुरशद हाल सुनना मुश्किल है,इसलिए शेर सुनता रहता हूं। इश्क़ जिंदा भी छोड़ देता है मुरशद,मैं तुम्हे अपनी मिसाल देता हूं।
के ना चाहते हुए भी इश्क़ दीवाना बना लेता हैमुर्शद, खुदा दिल तो देता है मगर धड़कन किसी ओर को बना देता है |
बस एक मोड़ गलत मुड़ गया था मुर्शदफिर ना रास्ता मिला, ना ही घर आया |
हम तो अकेले थेअकेले हैं मुर्शिद तुमनेछोड़ कर कोई कमालथोड़ी ना किया है
तेरी चाहत के भीगे जंगलों मेंमेरा तन मोर बनकर नाचते है.
नफरत के दावेएक तरफ मुरशदउसका मेरे नामपर मुड़कर देखना गजब था
नहीं मिलता वक्तसाथ गुजारने को..“मुर्शिद” हम दोनो एक ही फलकके सूरज चांद है
पोछा था मैं ने दर्द से की बता तू सही मुझकोये खनुमान ख़राब है तेरे भी घर कही
हर किसी से इश्क़कहाँ होता है मुर्शदइश्क़ उन्हीं से होता हैजो नसीब में नहै होते
तेरी आवाज है कि सूफी का कोई नग्मा है,जिसे सुनूँ तो सुकूँ जन्नतों सा मिलता है।
मंजिल भी तुम हो तलाश भी तुम हो, उम्मीद भी तुम हो आस भी तुम हो, इश्क भी तुम हो और जूनूँ भी तुम ही हो, अहसास तुम हो प्यास भी तुम ही हो।
दुश्मनी उसकी तबियत में रची है मुर्शद,कोई चिंगारी जहाँ देखी हवा दी उसने।
मत मांगना मेरी लम्बी उम्र की दुआ खुदा से,बस मेरी ज़िन्दगी का सफर तब तक का लिख दो जब तक हम साथ है।
मोहब्बत तो मेरी भी मुकम्मल हो सकती थीं मुर्शीद,पर अफसोस वो शाकाहारी थी और मैं मुर्गाहरी।
कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं ,नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है
मुर्शीद हमेंभरी जवानीमें गम मिला हैहमारे साथ कोई दगा कर गया
सारे ऐब देखकर भी मुर्शीद को तरस है आया,हाय! किस मोम से खुदा ने उनका दिल है बनाया।
बात दिल परआ बनी थी मुर्शदऔर वो दिलतोड़ना चाहते थे |
हमें कमरों में नहीं किताबों में उतारोहाए मुर्शद हम मोहब्बत के मारे हुए हैं |
शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर,या वो जगह बता जहाँ पर खुदा नहीं
शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं
सुना है वो जाते हुए कह गये,के अब तो हम सिर्फ़ तुम्हारे ख्वाबो मे आएँगे, कोई कह दे उनसे के वो वादा कर ले, हम जिंदगी भर के लिए सो जाएँगे..
हम हर जगह सेठुकराये गए हैं,मुर्शिद ! क्या हम भीजन्नत में जाएंगे ?
*आपने ज्ञान की हजारों “किताबें” पढ़ी होगी, लेकिन क्या आपने कभी खुद को ‘पढ़ने’ की कोशिश की है।*
ख़ुदाया आज़ाद करदे,मुझे ख़ुद अपना ही दीदार दे दे,मदीना हक़ में करदे,सूफ़ियों वाला क़िरदार दे दे।
लाख पर्दे झूठ के खींच दो ज़माने के सामने,क्या कहोगे क़यामत के दिन ख़ुदा के सामने।
ज़िन्दगी से इतना सबक तो सीख लिया है फिक्र में रहोगे तो खूब जलोगे बेफिक्र रहोगे तो दुनिया जलेगी.
फीके पड जाते हैं दुनियाभर केतमाम नज़ारे उस वक़्त,सजदे में तेरे झुकता हूँ तो मुझेजन्नत नज़र आती हैं।
ख्वाहिश जन्नत की,एक सजदा गिरां गुजरता है,दिल में है खुदा मौजूद,क्यूं जा-ब-जा फिरता है।
कतरे कतरे पर खुदा की निगाहे करम है..न तुम पर ज्यादा न हम पर कम है
के तू उतना कर ही नहीं सकता था मुझेमुर्शद, जितना खुद को बर्बाद किया मैंने
पूछा मैं दर्द से कि बता तू सही मुझेऐ ख़ानुमाँ-ख़राब है तेरे भी घर कहींकहने लगा मकान-ए-मुअ’य्यन फ़क़ीर कोलाज़िम है क्या कि एक ही जागह हो हर कहीं
बाँध सके मुझेऐसी कोई बंदिश नहीं, मुर्शिदपर तेरी बाहों कीबात कुछ और है
मेज़बान , बावर्ची , खाना तक्सीम करने वाले वगैरा सभी को चाहिये कि जूं ही नमाज़ का वक्त हो , सारा काम छोड़ कर बा जमाअत नमाज़ का एहतिमाम करें ।
हम जैसे बेकारलोग मुरशदरूठ भी जाए तोकोई मनाने नहीं आता
हम हर जगह सेठुकराये गए हैं,मुर्शिद ! क्या हम भीजन्नत में जाएंगे ?
जाओ मुर्शिद तुम्हे इजाज़त है रूको,जाते जाते सब दरवाज़े बंद कर जाना।
हम समझाते तोसमझाते कैसे मुर्शदवो कुछ सुननाही नहीं चाहते थे |
तेरे बिना न मान लगता है न दिल लगता है i miss you. Tere bina na maan lagta hai na dil lagta hai, i miss you..
पहले लगता था कितुम ही दुनिया हो मुर्शीदऔर अब लगता हैकि तुम भी दुनिया हो
बुत-ख़ाना तोड़_डालिए मस्जिद को ढाइए #दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
दुनिया से अपना हर दर्द छुपा लेना, ख़ुशी न मिले तो गम गले लगा लेना, कोई अगर कहे मोहब्बत आसान होती है, तो उसे मेरा टूटा हुआ दिल दिखा देना।
चेहरे से कहा पता चलता है मुर्शिद,कौन अपने अंदर कितना दर्द रखता है।
उफ्फ वो तेरे नाम का पासवर्ड रखना,सुना है इश्क़ में पागलपन कहलाता है।
तेरी हर अदा मोहब्बत सी लगती है पल भर की जुदाई सदियों सी लगती है पता नहीं क्यों जिंदगी में हर पल तेरी जरुरत सी लगती है.
वो कहता था मुझे पसंद है मुस्कुराहट तेरीहाय मुर्शद, फिर ले गया छीन कर
तेरे बाद कोई होगा न तुझसे पहले थाअब बिछड के तुझसे मुअला जाऊ कहा.
तलब मौत की क्यूं करना गुनाह ए कबीरा है,मरने का शोंक है तो इश्क़ क्यों नहीं करते।
चुप – चाप बैठे है,आज सपने मेरे लगता हैहकीकत ने सबक सिखाया है…
बल्कि ऐसे अवकात में दा'वत ही मत रखिये कि बीच में नमाज़ आए और सुस्ती के बाइस जमाअत फ़ौत हो जाए ।
इक उमर बीत गईपूरी की पूरी मुर्शदउन्हें देखने की खवाहिशमगर अधूरी ही रही
दिल में प्यार का आगाज हुआ करता है, बातें करने का अंदाज हुआ करता है, जब तक दिल को ठोकर नहीं लगती, सबको अपने प्यार पर नाज हुआ करता है.
केयर करने वाला बॉयफ्रेंड नसीब वालों को ही मिलता है जान। care karne wala boyfriend nasib walo ko hi milta ha jaan.
अपनी अच्छाई परभरोसा रखो मुर्शिदकी जो उसने तुमको खोया हैवो एक दिन जरूर रोयेगा
मुरशद हाल सुनना मुश्किल है,इसलिए शेर सुनता रहता हूं।
वो केसी औरको मायसर हैमुरशद मेरा ये सदमासिरफ खुदा जनता है
सुना था फ़रिश्ते जान लेते है मुर्शिद,खैर छोड़ो अब तो इंसान लेते है।
मेरे नसीब में मोहब्बतनहीं लिखी गई मुर्शदमेरे नसीब मेंसिर्फ गम लिखा गया
एक दिन कबर में होगा ठिकाना याद रखआएगा ऐसा भी एक जमाना याद रख.
दर्द ऐ गम वो हमें सजा दे गये, झूठी कसमों की वफा दे गए, कहते थे हमेशा साथ रहेंगे तेरे, मगर कुछ दिनो मे ही दगा दे गए.
फ़रिश्ते ही होंगे जिनका हुआ इश्क मुकम्मल,इंसानों को तो हमने सिर्फ बर्बाद होते देखा है…
बेबी बातें तो रोज करते है चलो आज रोमांस करते है। Baby baten to roj karte hai chalo aaj romance karte hai.
चाँद की चाँदनी से एक पालकी बनायी है ये पालकी हम ने तारों से सजाई है ऐ हवा ज़रा धीरे-धीरे ही चलना मेरे दोस्त को बड़ी प्यारी |सी नींद आई है।
हम अपने मायर ज़माने से जुड़ा रखते हैदिल में दुनिया नहीं इश्क ए खुदा रखते है.
अगर मोहब्बत हो तो गरीब से हो तोहफे न सही धोके तो नहीं मिलेंगे। Agar mohabbat ho to garib se ho tohfe na sahi dhoke to nahi milenge.
सुनो! एक तो मैं ‘सूफ़ी सा बन्दा’और उस पर तुम एक ‘मासूम सी परी’…उफ्फ्फफ ! कमबख्त ‘इश्क’ तो होना ही था हो गया
जाने कैसे जीतें हैं वो जो कभी तेरे सीने से लगे हैं,मेरे साकी, हम तो नैन लड़ाकर ही बेसुध से पड़े हैं।
परिंदा आज मुझे शर्मिंदा गुफ़्तार न करेऊंचा मेरी आवाज़ को कोई दीवार न करे.
मेरे होठो पे तुम्हारा ही नाम है दिल के इस झरोखे में तुम्हारा ही काम है दुनिया बदहवास हो चुकी है तुझे ढूंढने में मेरे दिल के कोने में तेरा ही मकान है.
जिसकी ख्वाहिशहोती है हमें मुर्शदवो शख़्स हमेंमिलता क्यूँ नहीं |
यूँ तो उसका जहाँ हैला-मुक़ाम ‘एजाज़’ लेकिन,बसता हैं वह खुदाअपने बंदों के दिलों में सदा।
उम्र कच्ची हो ज़हन बूढ़ा हो जायेमुर्शीद ऐसी जवानी का दुख समझते हो।
अपनी छवी बनाय के जो मैं पी के पास गईजब छवी देखी पीहू की तो अपनी भूल गई