Murshid Shayari In Hindi : मुरशद हाल सुनना मुश्किल है,इसलिए शेर सुनता रहता हूं। इश्क़ जिंदा भी छोड़ देता है मुरशद,मैं तुम्हे अपनी मिसाल देता हूं।
आज तेरी याद हम सीने से लगा कर रोये तन्हाई मैं तुझे हम पास बुला कर रोये कई बार पुकारा इस दिल मैं तुम्हें और हर बार तुम्हें ना पाकर हम रोये.
मोहब्बत का मज़ा तब आता है मुर्शिद,जब एक उदास हो औऱ दूसरे पर क़ायामत आ जाएं।
मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जामसाक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में
मुर्शीद वफा की बातें सिर्फ खयालों में रहने दो,मुर्शीद ये इश्क़ मोहब्बत किताबों में रहने दो।
हमारा तो इश्क़ भी सूफियाना हैइश्क़ करते करते हम खुद ही सूफी हो गए
भरोसा तो जिंदगीका भी नहीं मुर्शिदऔर तुम इंसानोपर कर लेते हो |
अपनी अच्छाई परभरोसा रखो मुर्शिदकी जो उसने तुमको खोया हैवो एक दिन जरूर रोयेगा |
अतीत के गर्त में भविष्यतलाश करना एक बेवकूफी है,जो वर्तमान में रहकर भविष्यसंवारे, वो सच्चा सूफी है।
मोहब्बते मेहरबान मुर्शीद मेरे तू आजा,के अब हम सबक वफा का भूलने लगे।
आज इंसान का चेहरा तो हैसूरज की तरह, रूह में घोरअँधेरे के सिवा कुछ भी नहीं..
मज़्जिलो का खबर सिर्फ जाने खुदा’मोहब्बत है रहनुमा फकीरों का.
इज़हार से नहीं इंतज़ार से पता चलता है मोहब्बत कितनी गहरी है। Izahar se nahi intzaar se pata chalta hai mohabbat kitni gahri hai.
सारी दुनिया की मोहब्बत से किनारा करके मुर्शिद,हमने खुद को रखा है तुम्हारा करके।
ऐसा है रिश्तातेरा मेरातू है मुर्शिदमैं हु मुरीद तेरा |
होंठो की जुबान यह आँसू कहते है, जो चुप रहते है फिर भी बहते है,और इन आँसू की किस्मत तो देखिये,यह उनके लिए बहते है जो इन आँखों में रहते है।
इंसान लोगो को किया दे गाजो भी देगा मेरा खुदा ही देगामेरा क़ातिल ही मेरे मुनसिब हैकिया मेरे हक़ में फैसला देगा
पहले लगता था कितुम ही दुनिया हो मुर्शीदऔर अब लगता हैकि तुम भी दुनिया हो |
अब हस्बे मा'मूल दुआ ख़त्म कर दीजिये । ( अगर थोड़ा थोड़ा खाना और पानी निकाला था तो वोह दूसरे खानों और पानी में डाल दीजिये )
हुम्हे पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो,हुम्हारा शहर तो बस यूँ ही रास्ते में आया था।
मोहब्बत सूरत से नही होती मोहब्बत तो दिल से होती है सूरत उनकी खुद ब खुद अच्छी लगने लगती जिनकी कद्र दिल में होती है.
इबाब की सूरत हो के अघ्यार की सूरतहर जगह में आती है नजर यार की सूरत
तेरे दिल की महफिल सजाने आए थे, तेरी कसम तुझे अपना बनाने आए थे! ये तो बता किस बात की सजा दी तूने ओ बेवफा। हम तो तेरे दर्द को अपना दर्द बनाने आए थे॥
दौर-ए-वाबस्तगी गुज़ार के मैं अहद-ए-वाबस्तगी को भूल गया यानी तुम वो हो, वाकई, हद है मैं तो सचमुच सभी को भूल गया
उनके साथ तो मैंसिर्फ तमाशा थामुरशद इधर तो हमारीजिंदगी तबाह हो गई
मुर्शद वो जब मिला था मुझको, तो लगता था कभी बिछडेगा नहींलेकिन वो तो बिछड़ गया, मैंने बोला ना मुझे लगता था
आपकी आवाज़ ही कोई सूफी का नगमा हैजिसको सुनो तो सुकून जन्नत सा मिलता है.
उन्हें हँसते हुएदेखा मुर्शदहम रोक ना पाए खुद कोहमारी भी हंसी निकल पड़ी |
उसे लिखा गयाकिसी और के नसीब में मुर्शदवो शख़्स जिसे दुआओं मेंमैंने माँगा था |
यह तो परिंदों कीमासूमियत है मुर्शिदवरना दूसरों के घरों मेंअब यु कौन आता जाता है |
“गरूर ना कर #शाह ए शरीर का तेरा भी “खाक” होगा मेरा भी खाक होगा”
तरस गयी ये आँखे तुझे निहारने को काश आखरी बार थोड़ा और देख लिया होता। taras gayi ye ankhe tujhe niharne ko kash akhri bar thoda aur dekh liya hota.
नहीं मिलता वक्तसाथ गुजारने को..“मुर्शिद” हम दोनो एक ही फलकके सूरज चांद है |
जमीर ज़िंदा रख,कबीर ज़िंदा रख,सुल्तान भी बन जाए तो,दिल में फ़क़ीर ज़िंदा रख..
मुर्शीद हमें सिंगल नहीं मरना,मुर्शीद हमें भी जानू चाहिए।
रब से आपकी खुशीयां मांगते है, दुआओं में आपकी हंसी मांगते है, सोचते है आपसे क्या मांगे,चलो आपसे उम्र भर की मोहब्बत मांगते है।
क्या हम भी जन्नत मे जायेंगे मुर्शीद,हम तो हर जगह से ठुकराये हुए हैं।
उनकी तलाश में हम अपना दिल बेचने निकले थेमुर्शद, खरीददार ऐसा मिला दर्द भी दे गया ओर दिल भी ले गया
आज थोड़ा प्यार ज्यादा जता दूँ क्या तुम मेरे थे ये सब को बता दूँ क्या। aaj thoda pyar jyada jata dun kya tum mere the ye sab ko bata dun kya.
तेरी हर बात मेरे दिल को छू कर निकलती हैं, इसीलिए मुझसे सोच समझ कर बात करना. कही आप की बातें मेरा दिल को तोड़ न दे.
तुझ में घुल जाऊं मैंनदियों के समन्दर की तरह,और हो जाऊं अनजानदुनिया में कलंदर की तरह।
तेरे क्या हुए सब से जुदा हो गए,सूफी हो गए हम तुम खुदा हो गए।
वो छोड़ी नहींगई हमसे मुर्शदहमें उनकीआदत जो लगी थी
मुर्शिद माना कि मौतबरहक़ है लेकिनमेरे मरने तकतो जीने दो
वो जो कभी हमसेमोहब्बत करते थे मुर्शदवो हम परहँसते है अब |
मोहब्बत वाजिब थी हम पर हम ने कर डाली मुर्शिद,वफ़ा फ़र्ज़ है तुम पर देखते हैं अदा करते हो या कजा़
देखता हूं अब तेरी याद कैसे आती है,मुरशिद से अभी ताबीज बनवा कर आ रहा हूं।
मुरशद गैरों से क्या वफाकी उम्मीद रखते हैंशाम होते ही मेरासाया साथ छोड़ जाता है
हमें भी हुई थीमुर्शद मोहब्बत किसी सेहम भी तड़पे थेइक शख़्स के लिए |
हम जैसे बेकार लोग, के हम जैसे बेकार लोगमुर्शद रूठ भी जाएं तो कोई मनाने नहीं आता |
मुझे जन्नत ना उकबा नाएशो-इशरत का सामां चाहिए,बस करलूं दीदार-ए-मुहम्मदख़ुदा ऐसी निगाह चाहिए।
कभी रूबरू तकनहीं हुए थे उनसे मुर्शदतो बात दिल कीकैसे बताते उन्हें
के कहाँ पूरी होती हैं दिल की सभी ख्वाहिशेंमुर्शद, बारिश भी हो, यार भी हो फिर पास भी हो
कुछ लोग ज़िन्दगी में आते है, प्यार जता कर अपना बनाते है, कुछ दिनों में ए लोगो के लिए बस हमें तन्हा कर जाते है.
आँखो की चमक पलकों की शान हो तुम, चेहरे की हसी लबों की मुस्कान हो तुम, धड़कता है दिल बस तुम्हारे इन्तहां मे, फिर कैसे ना कहूँ,,मेरी जान हो तुम.
कोई छुपाता है तो कोई बताता है कोई रुलाता है तो कोई हसाता है प्यार तो हर इंसान को है किसी ना किसी से, बस कोई छोड़ जाता है तो कोई जिंदगी भर निभाता है.
तूने हमेशा आने में देर कर दीमुर्शद, मैंने हमेशा अपनी घड़ी को खराब समझा
के जिसके लफ़्ज़ों में तुम्हें अपना अक्स मिलेमुरशद बहुत मुश्किल है तुम्हें ऐसा शक्स मिले
दिल भी सूफी है साहब शब्दबिखेर कर इबाददत करता है।
इल्मे सफीना को आज तुमइल्मे सीना में तब्दील कीजिए,सूफियाना अंदाज में खुदको सूफी काव्य से रूबरू कीजिए।
साल-हा-साल और एक लम्हा कोई भी तो न इनमें बल आया खुद ही एक दर पे मैंने दस्तक दी खुद ही लड़का सा मैं निकल आया
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत ‘ग़ालिब’जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना
खैर अब कोई नही खैरियत पूछने वाला,मुर्शिद जहाँ रहे मेरे चाहने वाले ख़ुश रहे।
और किया इल्जाम लगाओगे हमारी आशिक़ी परहम तो साँस भी आपके यादो से पॉच के लेते है.
दो पहर के खाने के लिये बा'द नमाजे जोहर और शाम के खाने के लिये बा'द नमाजे इशा मेहमानों को बुलाने में गालिबन बा जमाअत नमाज़ों के लिये आसानी है ।
तेरी आरजू में हो जाऊं ऐसे मस्त मलंग,बेफिक्र हो जाऊं दुनिया से किनारा करके।
सोचता हूँ कि अब अंजाम-इ-सफर क्या होगा,लोग भी कांच के हैं, राह भी पथरीली है..
आपकी जुदाई भी हमें प्यार करती हैं आपकी याद बहुत बेकरार करती हैं जाते जाते कहीं भी मुलाकात हो जाये आप से तलाश आपको ये नज़र बार बार करती हैं.
वो तो अब पासभी नहीं आते मुर्शदना जाने पासकिसके अब जाने लगे है |
न ले हिज़्र का मुझसे तू इम्तिहां अब,लगे जी ना मेरा तेरे इस दहर में।
मैं तो बस कश्ती थी मुर्शदकिनारे पर कोई और थी।
सरकारे मदीना - के तवस्सुत से सय्यिदुना आदम सफ़िय्युल्लाह से ले कर अब तक जितने इन्सान व जिन्नात मुसल्मान हुए या क़ियामत तक होंगे सब को पहुंचा ।
अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़ वो बरसों बाद जब मुझ से मिला है भला मैं पूछता उससे तो कैसे मताए-जां तुम्हारा नाम क्या है?