341+ Mirza Ghalib Love Shayari In Hindi 2 Lines | Top Mirza Ghalib Shayari in Hindi 2 Lines

Mirza Ghalib Love Shayari In Hindi 2 Lines , Top Mirza Ghalib Shayari in Hindi 2 Lines
Author: Quotes And Status Post Published at: July 20, 2023 Post Updated at: July 20, 2023

Mirza Ghalib Love Shayari In Hindi 2 Lines : इशरत ऐ क़तरा है दरिया मैं फ़ना हो जाना… दर्द का हद् से गुज़ारना हैं दवा हो जाना ॥ दिल से तेरी निगाह जिगर ताक उतर गया.. दोनों को इक आदा में रज़ामंद कर गया ॥

अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो जो मय ओ नग़्मा को अंदोह-रुबा कहते हैं

हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब, नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।

तेरा फिरने का इंतज़ार मे नींद न आई उम्र भर, आने का अहद कर गैए आए जो रोज ख़्वाब मै !!

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल, जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के।

मोहब्बत मै उनकी आना का पास रखते है, हम जानकर भी अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हे !!

हथून कीय लकीरून पय मैट जा ऐ ग़ालिब, नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते !

“कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर–ए–नीम–कश कोये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता”

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’, कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे

मेरे मरने का एलान हुआ तो उसने भी यह कह दिया, अच्छा हुआ मर गया बहुत उदास रहता था।

काँटों की ज़बाँ सूख गई प्यास से या रब इक आबला-पा वादी-ए-पुर-ख़ार में आवे

यह ज़िद की आज न आये और आये बिन न रहे, काजा से शिकवा हमें किस क़दर है,क्या कहिये।

वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी, उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया !

कोई वीरानी सी वीरानी है, दश्त को देख के घर याद आया।

🔘 दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई। दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।

गुजर रहा हूँ यहाँ से भी गुजर जाउँगा, मैं वक्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !

उधर वो बद-गुमानी है इधर ये ना-तवानी है न पूछा जाए है उस से न बोला जाए है मुझ से

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था

बस की दुश्वार है हर काम का आसान होना, आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना।

“इक शौक़ बड़ाई का अगर हद से गुज़र जाएफिर ‘मैं’ के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता”

करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए

न सुनो गर बुरा कहे कोई, न कहो गर बुरा करे कोई।

मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ काश पूछो कि मुद्दआ क्या है

आया है बे-कसी-ए-इश्क पे रोना ग़ालिब, पाता नही किसके घर जायेगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद !!

मुझसे कहती है तेरे साथ रहूंगी सदा, ग़ालिब। बहुत प्यार करती है मुझसे उदासी मेरी।।

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

रोक लो गर ग़लत चले कोई, बख़्श दो गर ख़ता करे कोई।

कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग हम को जीने की भी उम्मीद नहीं

क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन हम को तक़लीद-ए-तुनुक-ज़र्फ़ी-ए-मंसूर नहीं

इक शौक़ बड़ाई का अगर हद से गुज़र जाए, फिर ‘मैं’ के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता।

मैं उदास बस्ती का अकेला वारिस, उदास शख्सियत पहचान मेरी।

“फ़िक्र–ए–दुनिया में सर खपाता हूँमैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!”

आईना देख के अपना सा मुँह लेके रह गए, साहब को दिल न देने पे कितना गुरूर था।

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की तलाफ़ी की भी ज़ालिम ने तो क्या की

🔘 नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को। ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।

Mat Pooch Ki Kya Haal Hai Mera Tere Peeche, Tu Dekh Ki Kya Rang Hai Tera Mera Aage।

मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं, हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं।

🔘 काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’। शर्म तुम को मगर नहीं आती।।

मासूम मोहब्बत का बस इतना फ़साना है कागज़ की हवेली है बारिश का ज़माना है

मत पूँछ की क्या हाल हैं मेरा तेरे पीछे तू देख की क्या रंग हैं तेरा मेरे आगे …

रोने से और इश्क में बे-बाक हो गए, धोये गए हम इतने कि बस पाक हो गए।

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

“ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं,मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा !!”

आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत-ए-दीदार है

🔘 आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक। कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।

“रोक लो गर ग़लत चले कोई,बख़्श दो गर ख़ता करे कोई !!”

बिताने हुए लम्हों को मैं एक बार तो जी लो.. कुछ ख्वाब तेरा याद दिलाने के लिए हैं …

हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब, न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे !

“यादे–जानाँ भी अजब रूह–फ़ज़ा आती है,साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है !!”

हैं और भी दुनिया में सुखन-वर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और।

इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के

मौत का एक दिन मु’अय्यन है, निद क्यों रात भर नही आती ?

ये न थी हमारी किस्मत के विसाल-ए-यार होता, अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।

🔘 न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा। कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है।।

ज़िन्दगी उसकी जिस की मौत पे ज़माना अफ़सोस करे ग़ालिब, यूँ तो हर शक्श आता हैं इस दुनिया में मरने कि लिए.

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन। दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा है।।

वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी, उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया।

दिल सी तेरी निगाह जिगर तक उतर गई, 2नो को एक अड्डा में रज़्ज़ा मांड क्र गए !

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मिरे आगे

उस पे आती है मोहब्बत ऐसे, झूठ पे जैसे यकीन आता है।

उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा .. धुल था चहरे पे और आईना साफ़ करता रहा!!

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा

इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया

आगे आती थी हाल-इ-दिल पे हंसी अब किसी बात पर नहीं आती

कौन पूछता है पिंजरे में बंद पक्षी को ग़ालिब .. याद वही आते है जो छोड़कर उड़ जाते है !!

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन। दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा है।।

कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं आज ‘ग़ालिब’ ग़ज़ल-सरा न हुआ

था ज़िन्दगी में मर्ग का खत्का लाग हुआ, उड़ने से पेश -तर भी मेरा रंग ज़र्द था.

जरा सा छेद क्या हुआ मेरे जेब में सिक्कों से ज्यादा तो रिश्तेदार गिर गए।।

हैं एक तिर जिस मै दोनों छिदे पड़े है .. वह वक़्त गए कि अपने मन से जिगर जुड़ा था !!

जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है

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