Kavita Shayari In Hindi : हिन्दी तो है कवियों की बानी, इसमें पढ़ते नानी की कहानी हम सबको है हिन्दी से प्यार, मत करो इस भाषा का तिरस्कार।
वो कौन है जिसके बिना मुझे चैन नहीं मिलता वो कौन है जो मुझमे घर करके बैठा है घूम लिया गलियां, मंदिर मस्जिद घूम लिया जाने वो एक शख्स कहाँ रहता है
जिस रास्ते पे चल रहे उस पर हैं छल पड़े कुछ देर के लिए मेरे माथे पर बल पड़े हम सोचने लगे की यार लौट चलें क्या !! फिर सोचा यार चल पड़े तो चल पड़े..
ठक ठक भरती कदम,होल होल उठाती है।अपने आप में खोई,गुड़ियों से बतलाती है।।
मै अपना पन ही अक्सर ढूंढता रहता हू रिश्तो मेंतेरी निश्छल सी ममता कहीं मिलती नहीं माँ.
लबों पे आके ठहर गई,बातें कुछ अनकही सी,ज़िद थी इस बार,शुरुआत वो करे।
रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़नासूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया
होने लगी है अब घुटन दिल की दीवारों से अपना कह कर मुझको कोई बुलाता क्यों नहीं
बदल गये हो आप तो, हम भी कहाँ पुराने रहे । ना खुद ही आप आने से रहे,ना हम ही बुलाने से रहे।
कभी जमीं कभी फ़लक भी हैदोस्ती झूठ भी है सच भी हैदिल में रह जाए तो कसक भी हैकभी ये हर भी हैं जीत भी है
कोई आंसू कोई शबनम कोई मोती कहता है, शेर नयन से बहता पानी,बिछडी हुई मोहब्बतें।
मेरी जिंदगी कविताव्यक्ति का आचरण कैसा होना चाहिए ?सवाल तो लाख ठके का,ग़म तो इसका हैं कि समझाये कौन,किसकी किसको पूछ सकें,ओर इतना दर्द बताये कौन.
जब तेरे बिना लोरियों कहानियों यह पलके सोया नहीं करती थी,माथे पर बिना तेरे स्पर्श के ये आंखें जगा नहीं करती थी.
मै तो ख्वाबों मे खोया थातु मेरे सपनों मे खोई थी क्याये जो मुहब्बत-मुहब्बत कहती फिरती होतुम्हें सच मे मुहब्बत हुई थी क्या
एक प्यार भरा रिश्ता था वो मेरा जो मुझे अब भी याद आता हैं खो गया वक्त के भँवर में कहीं जो हर पल मेरे साथ होता था
तेरी रूह का दुश्मन साथ तेरे होगा अब जो होगा साथ तेरे बाद मेरे होगा आँखों से आंसू नहीं याद बहेगी मेरी तुझे मुझ पर यकीन बाद मेरे होगा
कुछ इस कदर बेबस हूं मैं अपने दिल से,तुम्हीं से इश्क दोबारा कर लूं क्या?
चलना हमें सिखाती माँ,मंजिल हमें दिखाती माँ।
दीया बुझने से पहले जलने का एहसास क्या जानो। किसी के दिल मे उठते प्यास का एहसास क्या जानो।
अब भी हम उनमे खोते जा रहे वो हमारे नहीं पर हम उनके और भी ज्यादा होते जा रहे है
जिन्हें शक हैं हमारे रिश्ते को लेकर, उन कमबख्तों का हर सवाल मिटा रहा हूँ मैं…
आंखे दर्द बयां कर रही थी,पर दिल ज़िद पे अडा था,वो रूठा था किसी बात पे,और वो अडी थी अपने सम्मान पे।
पर इससे हमारी चाहत कम नही होती, छोटे मोटे झगड़े होते हैं ग़ुस्से में कभी कभी बात भी बिगड़ जाती, पर एक दूजे से दूरी हमें रास नही आती,
अगर ईश्वर कहीं पर है उसे देखा कहां किसनेधरा पर तो तू ही ईश्वर का रूप है माँ, ईश्वर का कोई रुप है माँ
सुकून थी ज़िन्दगी मोहब्बत के बगैर क्यों मिली नज़रें हम अंधे अच्छे थे हर शौक छोड़ दिया मोहब्बत के आगे क्यों बने अच्छे हम बुरे अच्छे थे
So To Rahe Hai Har Roj लेकिन क्या नींद आ रही है… पता नहीं
अब इसे लोग समझते हैं गिरफ्तार मेरा सख्त नदीम है मुझे दाम में लाने वाला
कुछ तो बात है तुझमें जो मुझे तेरे तरफ़ खींचता चला गया तेरी अच्छाईयां बुराईयां सब मुझे भाता चला गया हाँ मुझे अजनबी से प्यार हो गया ।।
वो आमादा हुए क्यों ख़ुदकुशी परजो कहते थे कि जीना आ गया है।
दारू इतनी मत पीना कि वह तुम्हें पीने लग जाएं, बिन आग व श्मशान के तुम्हारा शरीर जल जाएं।
धुंधला धुंधला सा है शमा आज यहांजो लम्हा है संग वो भी गुजर जायेगा !
लघु कविता इन हिंदीआज हरे हैं तो,कल पीत हो जायेंगे,ये पत्ते हैं रीत हो जायेगें,दरख़्तों को सहेज कर रखो,इन पर ही कोंपल,फिर आ जायेंगे।
पत्थर की चमक है न नगीने की चमक है चेहरे पे सीना तान के जीने की चमक है, पुरखों से विरासत मे हमें कुछ न मिला था जो दिख रही है खून पसीने की चमक है ।
जिन्दगी तो हार जीत का नाम हैं हर पल ख़ुशी गम का पैगाम हैं मत छोड़ना कभी हौसलों का हाथ चलते रहना ही हैं जिंदगी का काम —————————————————–
माना इक कमी सी है, जिंदगी थम सी हैं,पर क्यों दिल की धड़कनों को दरकिनार करें !!
दुनिया को लगता है आसान है मेरी जिंदगी मौत का एक फरमान है मेरी जिंदगी मुझ पर एक एहसान है मेरी जिंदगी बस पल दो पल की मेहमान है मेरी जिंदगी
प्यासी धरा और खेत पर मैं गीत लिक्खूंगा अब सत्य के संकेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
शहर में झांकती उदास शाम को देखा हैआवारा सड़कें गलियां को बदनाम देखा है
सभी नग्मे साज़ में गाये नहीं जाते , सभी लोग महफ़िल में बुलाये नहीं जाते , कुछ पास रह कर भी याद नहीं आते , कुछ दूर रह कर भी भूलाये नहीं जाते!
हैरत कैसी अब हिज्र पे हमने हिज्र को अपना समझा तनहा हूँ और ठीक हूँ अब हमने यार को एक खाब समझा
वह रात छिपकर जब तू अकेले में रोया करती थी,दर्द होता था मुझे भी, सिसकियां मैंने भी सुनी थी.
कार लेकर क्या करूँगा?तंग उनकी है गली वह, साइकिल भी जा न पाती ।फिर भला मै कार को बेकार लेकर क्या करूँगा?
कान्हा ना छेड़ो मुझे यूँ भोले बनकर मैं जानू भेद छिपा तोरे जो अंदर
दिल चाहता है मिलने को, गले लगने को तुझेकहीं छुपी मोहब्बत, सरेआम ना हो जाए।
तेरे चेहरे की चमक बेहिसाब, दिन-रात इसे ही निहार रहा हूँ मैं…
घर की पुरानी दीवारों सा,अब ढहने लगा है आदमी !
दुनिया समझ में आई मगर आई देर सेकच्चा बहुत था रंग उतरता चला गया.!
कुछ रुठे रुठे से लगते हो,तुम कहो तो तुम्हें मनाऊं क्या
पर हम उनकी मुस्कान को भला कैसे भुलायेंगे इस एक तरफा प्यार को भला अब किसे दिखाएंगे
घर की पुरानी दीवारों सा,अब ढहने लगा है आदमी !
मेरे सपनों में परिया फूल तितली भी तभी तक थे.मुझे आंचल में लेकर अपने लेटी रही माँ.
अब और नहीं घिसने देना चाहती तेरे ही मुलायम हाथों को,चाहती हूं पूरा करना तेरे सपनों में देखी हर बातों को.
सुनो ना,अब दिल भरा है क्योकि बहुत इश्क़ करा है,अब ये न कहना के तेरा दिल मेरे पास पड़ा है !!
कमाने के दिन से तो स्कूल के दिन अच्छे थेकितने प्यारे थे वो दिन जब हम बच्चे थे.!
माँ की आंखों में देखें सपने हजार हमारे वास्ते,मंजिलें बनाई ने अपनी न माँ ने चूने अपने रास्ते.
खो ना देना संबंधों को जबरदस्ती से रंग लगाकर, घूमना नाचना गाना बजाना तुम सब राग मल्हार।।
कभी छुपा लेते है गम की दिल के किसी कोने में।कभी किसी को सब कुछ सुनाने का दिल करता है ।।
हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे सेमैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,
मंज़िल समझ के बैठ गये जिनको चंदलोग मैं ऐसे रास्तों से गुजरता चला गया
भर जाता है जब मन शहर की भागती दौड़ती जिंदगी सेपकड़ता हूं बस और चल पड़ता हूं तेरे गांव की तरफ
बेबस पंछी आज अब्र का राजा है अब तो उसको डर नहीं हवाओं से आने वाले जो थे सारे अपने थे कोई गिला नहीं है जाने वालों से
बचपन को भुलाकर, लगाया काम गले से, स्वीकार किया वक्त का इनाम गले से, ठोकर लगी जब तेज से तो गिर पड़े लेकिन, गिर-गिर के भी उठना ही पड़ा घर के वास्ते!
सोएं रहेंगे वो बिस्तर पर आंखें मुंदे अन्धेरे मे,पर सब जाकर उनका दिदार क्यों नहीं करते ?
हर कण में हैं हिन्दी बसीमेरी मां की इसमें बोली बसीमेरा मान है हिन्दीमेरी शान है हिन्दी...
माँ की ममता करुणा न्यारी,जैसे दया की चादर.
कर देंगे तुम्हें खुद से जुदा पहले रातें मेरी लौटाओ मुझे कैसे हुई इतनी नफरत तुम्हें बेवफाई की वजह बताओ मुझे
अद्भुत माँ का रूप सलोना बिल्कुल रब के जैसा,प्रेम की सागर से लहराता इसका अपनापन ऐसा.
हर मौसम की अपनी एक खूबी है बेवक़्त की बारिश भी ठीक नहीं कैसे कहूं मैं किस सफर से लौटा हूँ बस समझ लो इश्क़ करना ठीक नहीं
मिल जाए मुझे चाहे बिछड़ने के लिए वो आये दिल तोड़ने के लिए कहता है ना जाने उसकी शकल-ओ-सूरत कैसी होगी ना जाने वो किसी से इश्क़ कैसे करता है
हाँ तो अब हम कुछ बदले बदले से हो गए हैं उलझे से थे अब कुछ सुलझे से हो गए हैं
उसके दिए हुए अब ज़ख्म भरने लगे चरसाज़ों से मेरा दर्द देखा ना गया क़ैद हुए बैठे हैं सब अपनी क़िस्मत में सुना है यहाँ कोई परिंदा देखा ना गया
एक दूसरे की खुद से ज्यादा परवाह किया करते थेये बात बस कल की ही लगती हैहम तुम अपनी दोस्ती पर कितना इतराया करते थे
हिन्दी पढ़ें, हिन्दी पढ़ाएंमातृभाषा की सेवा करदेश को महान बनाएं...