Heart Touching Mirza Ghalib Shayari In Hindi : “आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेइंतेहा थी, ज़िंदगी शायद फिर लौट आएगी ख़ाक में हम तमाम उम्र जो साथ निभाएंगे” “तुम्हारी नज़रों में हम बेसबब नहीं होते, दिल तो जलता है मगर शिकवा नहीं होता”
हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो हमारा शहर तो बस यूं ही रास्ते में आया था।
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,वो समझते है कि बीमार का हाल अच्छा है।
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।वर्ना हम भी आदमी थे काम के।
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यों रात भर नहीं आती।
चाँद मत मांग मेरे चाँद जमीं पर रहकरखुद को पहचान मेरी जान खुदी में रहकर
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गईदोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
हर दर्द का हक़ है इंसान को यहाँ,इश्क़ की राह में मत रो जाने दो।
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है
तुम ना आए तो क्या शहर ना हुई, हां मगर चैन से बसर ना हुई ,मेरा नाला सुना जमाने में एक तुम हो जिसे खबर न हुई
बेहद हदें पार की थी हमने कभी किसी के लिए आज उसी ने सिखा दिया मुझे हद में रहना।
कैसे करूं भरोसा गेरो के प्यार पर यहां अपने ही लेते हैं मजा अपनों की हार पर।
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद जो नहीं जानते वफा क्या है।
ग़ालिब हमें न छेड़ की फिर जोश-ऐ-अश्क सेबैठे हैं हम तहय्या-ऐ-तूफ़ान किये हुए।
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँमैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
दिल में उम्मीद के दिये जलाए हुए हैं,आँखों में आशियाँ के ख़्वाब सजाए हुए हैं।ख़ुशियों की बहारें तो छूट गईं कहीं,इस रोशनी में अब अकेले बिखरे हुए हैं।
खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम,कहीं ऐसा न हो जहाँ भी जाए, वही काफिर सनम निकले।
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चारये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों मेंपूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
इश्क पर जोर नहीं है यह वह आतिश ग़ालिब की लगाए न लगे और बुझाए ना बुझे।
दुनिया खरीद लेगी हर मोड़ पर तुझे,तूने जमीर बेचकर अच्छा नहीं किया।
दर्द का रंग लेकर बहार चली आई है,हंसते-हंसते आंसू बहाने चली आई है।ज़िंदगी के फ़साने को खुदा ने लिख दिया है,हम बस पढ़कर उन्हें पूरा कराने चले आएं हैं।
लगता था की उनसे बिछड़ेंगे तो मर जायेंगे,कमाल का वहम था यार, बुखार तक नहीं आया।
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर–ए–नीम–कश कोये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
इन भूतों को खुदा से क्या मतलब तोबा तोबा खुदा खुदा कीजे।
तेरे वादे पर जिए हम तो यह जान झूठ जाना की खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता।
हजारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले।
“कहाँ मायुस हुए लोग तेरी ज़ुस्तुजू की, मुझे तो तेरी वफ़ा ने लूटा है मुझको क्या ज़रूरत है जहाँ की चीज़ों की, तुझसे ख़ूबसूरत तो तेरी याद है”
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भीकुछ हमारी खबर नहीं आती
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
ना जाने किस रैन बसेरो की तलाश है इस चाँद कोरात भर बिना कम्बल भटकता रहता है इन सर्द रातो मे
कोई वीरानी सी वीरानी है दश्त को देख के घर याद आया
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँवर्ना क्या बात करनी नहीं आती
ग़म दे के तो तेरे नाम को भी लिख दिया,पर शायरी में उस ग़म को छुपा दिया।
आराम तो बहुत होगा जहां भी होंगे,लेकिन हिम्मत से जीने वाले हम हैं।
कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नजर नहीं आती मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यों रात भर नहीं आती।
इन फूलों से पांव के घबरा गया था में जी कुछ हुआ है राह को पुर खास देखकर।
कुछ लम्हे हमने ख़र्च किए थे मिले नही,सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया !!
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया,दिल जिगर तश्ना ए फरियाद आया,दम लिया था ना कयामत ने हनोज़,फिर तेरा वक्ते सफ़र याद आया।
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई,मारा ज़माने ने ग़ालिब तुम को,वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई।
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की,लिख दीजियो या रब उसे क़िस्मत में अदू की।
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिनदिल के खुश रखने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है
कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती
तूने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है।
है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैंवो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब,के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे।
मेरी मोहब्बत तेरा फलसफा,तेरी कहानी मेरी ज़ुबानी,अब किस-किस को हम ना कहते,यक़िन मानो अब ये हाँ में भी ना है।
तो फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर,आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में।
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू कोये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं
“उम्र भर ग़म नहीं पायेंगे, जो आँख से गिर जायेगा वो सब नम नहीं होता
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथजब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा
आशिक़ हूँ पर माशूक़ फरेबी है मेरा काम मजनू को बुरा कहती है लैला मेरे आगे
बाज़ीचा-ए-अतफल है दुनियां मेरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
बादशाह सिर्फ वक्त होता है इंसान तो यूं ही गुरूर करता है।
दिल की तन्हाई को आग़ाज़ बना लेते हैं,दर्द जब हद से गुज़र जाए, तो गा लेते हैं।
“हर एक बात पे कहते हो तुम के तू क्या है, तुम्हीं कहो के ये अंदाज़े ग़ालिब क्या है”
हम भी दुश्मन तो नहीं है अपनेग़ैर को तुझसे मोहब्बत ही सही
बक रहा हूँ जूनून में क्या क्या कुछ कुछ ना समझे खुदा करे कोई
हम ना बदलेंगे वक्त की रफ्तार के साथ जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैरा हन हमारी जेब को अब हाजत ए रफु क्या है।
हमें तो रिश्ते निभाने है,वरना वक़्त का बहाना बनाकर,नज़र अंदाज करना हमें भी आता है।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम ही कहो कि यह अंदाज एक गुफ्तगू क्या है।
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेतेकफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
दुख देकर सवाल करते हो तुम भी ग़ालिब कमाल करते हो देख कर पूछ लिया हाल मेरा चलो कुछ तो ख्याल करते हैं।
वो आए घर में हमारे खुदा की क़ुदरत हैं कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं
हम तो जाने कब से हैं आवारा-ए-ज़ुल्मत मगर,तुम ठहर जाओ तो पल भर में गुज़र जाएगी रात
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ,मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में।
दुनिया अंधेरी है, रात लंबी है मेरा दिल इस गाने से भारी है ओह, मैं कैसे कामना करता हूं कि मैं उसे देख सकूं जो मेरे लिए इतना मायने रखता है