Galib Ki Shayari On Dosti In Hindi : रास क्यों दोस्ती किसी की आई ना हमको हमने हर तौर से निभा कर देखी बिछड़ के तो खत भी ना लिखे यारो ने कभी कभी की अधूरी सी बात से भी गए
उनकी देखंय सी जो आ जाती है मुंह पर रौनक, वह समझती हैं केह बीमार का हाल अच्छा है !
हर तरह के शिकवे को सह लेते है जिंदगी को युही जी लेते है मिला लेते है हाथ जिनसे दोस्ती का उन हाथो से फिर जहर भी पी लेते है
अब अगले मौसमों में यही काम आएगा,कुछ रोज़ दर्द ओढ़ के सिरहाने रख लिया !!
है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैंवो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था।
ये न थी हमारी क़िस्मतकि विसाल-ए-यार होताअगर और जीते रहतेयही इंतेज़ार होता।
एक खुबसूरत दिल हजार खुबसूरत चाहेरों से बहतर है इसलिएज़िन्दगी में हमेशा ऐसे लोगो को शामिल करोकिन के दिल उन के चाहेरों से जयादा खुबसूरत और साफ़ हो
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है बना है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता वगर्ना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिबतमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है..
लगता है जिंदगी आज भी हमसे कुछ खफा है, चालिए छोड़ए ये कौन सी पहली दफा है ।।
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में‘ग़ालिब’ सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है।
इसलिए कम करते हैं जिक्र तुम्हारा, कहीं तुम काश से आम ना हो जाओ
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,बैठे रहें तसव्वुर–ए–जानाँ किए हुए !!”
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँमैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
मेरी किस्मत में ग़म गर इतना था, दिल भी या रब कई दिए होते।
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के।
इश्क़ मुझको नहीं वेह्शत ही सही मेरी वेह्शत तेरी शोहरत ही सही
तुम ना आए तो क्या सहर ना हुई हाँ मगर चैन से बसर ना हुई मेरा नाला सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर ना हुई
मेरी ज़िन्दगी है अज़ीज़ तर इसी वस्ती मेरे, हम सफर मुझे क़तरा क़तरा पीला ज़हर, जो करे असर बरी देर तक..!!
तेरे वादे पर जिये हमतो यह जान,झूठ जानाकि ख़ुशी से मर न जातेअगर एतबार होता ..गा़लिब
चाहें ख़ाक में मिला भी दे किसी याद सा भुला भी दे,महकेंगे हसरतों के नक़्श* हो हो कर पाएमाल^ भी !
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब, नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नहीं होते !
बनाकर फकीरों का हम भेस गालीब, तमाशा ए असल ए करम देखते हैं
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’।शर्म तुम को मगर नहीं आती
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़। वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।
तुम ना आए तो क्या सहर ना हुई, हां मगर चैन से बसर ना हुई, मेरा नाला सुना जमाने ने, एक तुम हो जिसे खबर ना हुई
हर रंज में ख़ुशी की थी उम्मीद बरक़रार,तुम मुस्कुरा दिए मेरे ज़माने बन गये।
तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें,मौत कुछ तुम तो नहीं है कि बुला भी न सकूं।
आता है कौन-कौन तेरे गम को बांटने गालिब, तू अपनी मौत की अफवाह उड़ा के देख
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है। वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
दुनिया गोर रंग के नशे में चूर है और हमारा मेहबूब काले रंग में भी मशहूर है
भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया.
पीने दे बैठ कर मस्ज़िद में ग़ालिब, वरना वो जगह बता जहाँ खुदा नहीं।
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ, मैं कहाँ और ये बवाल कहाँ। इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के।
जान दी हुई उसी की थी, हक़ तो ये है कि हक़ अदा न हुआ।
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोईमेरे दुख की दवा करे कोई।
हो उसका ज़िक्र तो बारिश सी दिल में होती हैवो याद आये तो आती है दफ’तन ख़ुशबू।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या हैतुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँमैं कहाँ और ये वबाल कहाँ।
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।
ग़ालिब बुरा ना मान जो वाइज़ बुरा कहे ऐसा भी कोई है की सब अच्छा कहे जिसे
कुछ लम्हे हामने ख़र्च किए थे पर वो मिले नही, सब कुछ हिसाब जोड़ के सिरहाने पे रख लिया !!!
रंज से खुगर हुआ इंसान तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ी इतनी की आसान हो गई
“उस पे आती है मोहब्बत ऐसेझूठ पे जैसे यकीन आता है”
तेरे वादे पर जिये हम तो यह जान,झूठ जाना कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता।।
मोहब्बत मै उनकी आना का पास रखते है, हम जानकर भी अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हे !!
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है !
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं है क़ायल, जब आपनि आँख से ना टपका तो फिर लहू कया हैं !!
तुम न आए तो क्या सहर न हुई हाँ मगर चैन से बसर न हुई।
मेरा नाला सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।।
गुजर रहा हूँ यहाँ से भी गुजर जाउँगा, मैं वक्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !
तुम न आए तो क्या सहर न हुई, हाँ मगर चैन से बसर न हुई, मेरा नाला सुना ज़माने ने, एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई..!!
दूसरों पर कीचड़ उछालने से पहले इतना याद रखेंके आप भी इंसान है और गलतियों से पाक आप भी नहीं
न सुनो गर बुरा कहे कोई, न कहो गर बुरा करे कोई।
बना कर फकीरों का हम भेष ग़ालिब, तमाशा एहल-ए-करम देखते हैं।
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज,मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं।
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गएधोए गए हम इतने के बस पास हो गए।
आज यह प्रार्थना इश्क़ के काबिल नहीं रहा .. जिस दिल पे मुझे नाज था वो दिल नहीं रहा !!!
मैं भी मुँह में जुबां रखता हूँ काश पूछो की मुद्दा क्या है
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसेवरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भीकुछ हमारी खबर नहीं आती
एक यूजर ने एक ही शायरी को अलग-अलग शायरों के नजरिए से बोलते शख्स की वीडियो शेयर की.
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो।
“है और तो कोई सबब उसकी मुहब्बत का नहीं,बात इतनी है के वो मुझसे जफ़ा करता है !!”
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
हम तो फना हो गए उनकी आँखे देखकर ग़ालिब,ना जाने वो आइना कैसे देखते होंगे!
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन।हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है।।
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता !
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल, जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़जीने और मरने काउसी को देख कर जीते हैंजिस काफ़िर पे दम निकले।