Galib Ki Shayari On Dosti In Hindi : रास क्यों दोस्ती किसी की आई ना हमको हमने हर तौर से निभा कर देखी बिछड़ के तो खत भी ना लिखे यारो ने कभी कभी की अधूरी सी बात से भी गए
है और भी दुनिया में सुखनवर बहुत, अच्छे कहते है की ग़ालिब का है, अंदाज-ए-बयां और..!!
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं काइल, जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
बदनामी का डर है तो मोहब्बत छोड़ दो गालिब, इश्क की गलियों में जाओगे तो चर्चे जरूर होंगे
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन। दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा है।।
ज़िन्दगी यूँ भी गुज़र ही जातीक्यों तेरा राहगुज़र याद आया
ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्रकाबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे
पिलाने वाले कुछ तो पिला दिया होता शराब कम थी तो पानी मिला दिया होता!
तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखेंहम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं होग़ालिब कहते हैं अगले ज़मानेमें कोई मीर भी था।
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआउड़ने से पेश्तर भी मेरा रंग ज़र्द था
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।
मैंने मजनूँ पे लड़कपन में असदसंग उठाया था के सर याद आया
ज़िन्दगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे।
तेरे वादे पर जिए हम तो यह जान, झूठ जाना की खुशी से मर ना जाते अगर एतबार होता
तुम न आए तो क्या सहर न हुई हाँ मगर चैन से बसर न हुई।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है सीना जुया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है फिर जिगर खोदने लगा नाख़ुन आमद-ए-फ़स्ल-ए-लाला-कारी है
दोस्ती का शुक्रिया कुछ इस तरह अदा करू, आप भूल भी जाओ तो मे हर पल याद करू, खुदा ने बस इतना सिखाया हे मुझे कि खुद से पहले आपके लिए दुआ करू..
आगे आती थी हाल-इ-दिल पे हंसी अब किसी बात पर नहीं आती
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँवर्ना क्या बात करनी नहीं आती
दर्द हो दिल में तो दबा दीजिए, दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए
तुम न आए तो क्या सहर न हुई, हाँ मगर चैन से बसर न हुई, मेरा नाला सुना ज़माने ने, एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई..!!
वाइज़ तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिलाके देख नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख
आज फिर पहली मुलाक़ात से आग़ाज़ करूँ,आज फिर दूर से ही देख के आऊँ उस को।
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आयादिल जिगर तश्ना-ए-फ़रियाद आया
चांदनी रात के खामोश सितारों की क़सम,दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं।
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा होकि चश्म-ए-तंग शायद कसरत-ए-नज़्ज़ारा से वा हो
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता।डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।।
वाइज़!! तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिलाके देख। नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख।।
“एजाज़ तेरे इश्क़ का ये नही तो और क्या है,उड़ने का ख़्वाब देख लिया इक टूटे हुए पर से !!”
अफ़साना आधा छोड़ के सिरहाने रख लिया,ख़्वाहिश का वर्क़ मोड़ के सिरहाने रख लिया !!
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता।।
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँमैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
लगता है जिंदगी आज भी हमसे कुछ खफा है, चालिए छोड़ए ये कौन सी पहली दफा है ।।
हम जो सबका दिल रखते हैंसुनो, हम भी एक दिल रखते हैं।
ग़ालिब छूटी शराब पर अब भी कभी कभी पीता हूँ रोज़-ए-अब्र और शब्-ए-मेहताब में
बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता,वगर्ना शहर में “ग़ालिब” की आबरू क्या है..!!
मेरा नाला सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।।
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसेवरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है
मरते है आरज़ू में मरने कीमौत आती है पर नही आती,काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’शर्म तुमको मगर नही आती।
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोईमेरे दुख की दवा करे कोई।
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मीरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.
दिल–ए–नादाँ तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।
तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है।
भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया !!
नज़र लगे ना कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्म-इ-जिगर को देखते हैं
अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहोजो मय ओ नग़्मा को अंदोह-रुबा कहते हैं।
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चारये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैंवो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था।
ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ, क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में …
🔘 रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’। कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था।।
उस पे आती है मोहब्बत ऐसेझूठ पे जैसे यकीन आता है
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब, नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नहीं होते !
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिबतमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है..
ग़ालिब बुरा ना मान जो वाइज़ बुरा कहे ऐसा भी कोई है की सब अच्छा कहे जिसे
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता हैवो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है आखिर इस दर्द की दवा क्या है
तू ने क़सम मैकशी की खाई है ग़ालिबतेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे, दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे !
हसरतो की निगाहो पे सक्त पहरा है नजाने किस उम्मीद पर दिल ठहरा है तेरी चाहतो की कसम ऐ दोस्त अपनी दोस्ती का रिश्ता तो प्यार से भी गहरा है
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिबज़ख्म का एहसास तब हुआजब कमान देखी अपनों के हाथ में
इक क़ैद है आज़ादी-ए-अफ़्कार भी गोया,इक दाम जो उड़ने से रिहाई नहीं देता
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का।उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।।
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैंकभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं
“इक क़ुर्ब जो क़ुर्बत को रसाई नहीं देता,इक फ़ासला अहसास–ए–जुदाई नहीं देता”
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए कोई हम-साया न हो और पासबाँ कोई न हो
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे, दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे। Dard ho dil mein to dawa kije, dil hi jab dard ho to kya kije.
यारों खुद का दिल ना दुखाना कभी भी आज़माइश को हद से ना गुजारना दोस्ती की भी मजबूरिया होती है इंसान की भी इसे समझना भूले से भी गलत ना हमें ठहराना
तारों में अकेले चांद जगमगाता है,मुश्किलों में अकेले इंसान डगमगाता है,काटों से मत घबराना मेरे दोस्त,क्योंकि काटों में भी गुलाब मुस्कुराता है.!
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।