393+ Faraz Shayari In Hindi | शायरी सुकून

Faraz Shayari In Hindi , शायरी सुकून
Author: Quotes And Status Post Published at: September 23, 2023 Post Updated at: October 12, 2023

Faraz Shayari In Hindi : माना कि तुम गुफ़्तगू के फन में माहिर हो फ़राज़ वफ़ा के लफ्ज़ पे अटको तो हमें याद कर लेना मेरे जज़्बात से वाकिफ है मेरा कलम फ़राज़, मैं प्यार लिखूं तो तेरा नाम लिख जाता है।

ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है ‘फ़राज़’ औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं।

कौन देता है उम्र भर का सहारा फ़राज़ लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते रहते हैं

हुई है शाम तो आंखों में बस गया फिर तू,कहां गया है मेरे शहर के मुसाफिर तू।

अब तेरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं,कितनी रग़बत थी तेरे नाम से पहले पहले

आँखें खुली तो जाग उठी हसरतें फराज़, उसको भी खो दिया जिसे पाया था ख्वाब में.,

उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना ऐ मिरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे

दोस्ती अपनी भी असर रखती है फ़राज़, बहुत याद आएँगे ज़रा भूल कर तो देखो.,

वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं कि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं

माना कि तुम गुफ़्तगू के फन में माहिर हो फ़राज़, वफ़ा के लफ्ज़ पे अटको तो हमें याद कर लेना.,

उस से बिछड़े तो मालूम हुआ की मौत भी कोई चीज़ है फ़राज़ ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी महफ़िल में गुज़ार आए।

वो एक रात गुजर भी गई मगर अब तक,विसाल-ए-यार की लज्जत में टूटता है बदन..

नाकाम थीं मेरी सब कोशिशें उस को मनाने की, पता नहीं कहाँ से सीखीं जालिम ने अदाएं रूठ जाने की।

एक बेनाम सी उम्मीद पे अब भी शायद अपने ख्वाबों के जज़ीरों को सजा रखा हो

बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का सो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं

वो शख्स जो कहता था तू न मिला तो मर जाऊंगा वो आज भी जिंदा है यही बात किसी और से कहने के लिए.

अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख़्म खाइए ता-ज़िंदगी ये दिल न कोई आरज़ू करे

अब तो हमें बी तर्क-ए मरासम का दुख नहींपर दिल ये चाहता है के आगाज तू करे।

जाने किस हाल में हम हैं कि हमें देख के सब एक पल के लिये रुकते हैं गुजर जाते हैं

इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा उस पे महफ़िल में सुराही ने भी गर्दिश नहीं की

बड़ी मुश्किल से सुलाया था खुद को “फ़राज़” मैंने आजअपनी आँखों को तेरे ख्वाब का लालच दे कर

एक पल जो तुझे भूलने का सोचता हूँ फ़राज़, मेरी साँसें मेरी तकदीर से उलझ जाती हैं.,

तुम तकल्लुफ को भी इख्लास समझते हो फ़राज़, दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला.,

ढूँड उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें

खाली हाथों को कभी गौर से देखा है फ़राज़, किस तरह लोग लकीरों से निकल जाते हैं.,

वो शख्स जो कहता था तू न मिला तो मर जाऊंगा “फ़राज़” वो आज भी जिंदा है यही बात किसी और से कहने के लिए।

तन्हाइयों के दर्द से खूब वाकिफ था वो फ़राज़, फिर भी दुनिया में मुझे तनहा बनाया उसने.,

लोग पत्थर के बूतों को पूज कर भी मासूम रहे “फ़राज़”हम ने एक इंसान को चाहा और गुनहगार हो गए

ऐसी तारिखियाँ आंखों में बस्सी हैं के फ़राज़,रात तो रात है हम दिन को जलाते हैं चिराग।

इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ ऐ फ़राज़ इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं.

झेले हैं जो दुःख तूने ‘फ़राज़’ अपनी जगह हैं, पर तुम पे जो गुज़री है वो औरों से कम है.,

बच न सका ख़ुदा भी मुहब्बत के तकाज़ों से फ़राज़, एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला.,

वो जान गयी थी हमें दर्द में मुस्कराने की आदत है, देती थी नया जख्म वो रोज मेरी ख़ुशी के लिए।

आशिकी में मीर जैसे ख्वाब मत देखा करो,बावले हो जाओगे मेहताब मत देखा करो।

इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा उस पे महफ़िल में सुराही ने भी गर्दिश नहीं की

उसकी बातें मुझे खुशबू की तरह लगती हैं, फूल जैसे कोई सेहरा में खिला करता है.,

किसे ख़बर वो मोहब्बत थी या रक़ाबत थी बहुत से लोग तुझे देख कर हमारे हुए

एहतियात अहले-मोहब्बत कि इसी शहर में लोग गुल-बदस्त आते हैं और पा-ब-रसन जाते हैं

कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते

एक खलिश अब भी मुझे बेचैन करती है फ़राज़, सुनके मेरे मरने की खबर वो रोया क्यूँ था.,

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं

उम्मीद वो रखे न किसी और से फ़राज़, हर शख्स मोहब्बत नहीं करता उसे कहना.,

जब खिज़ां आए तो लौट आएगा वो भी फ़राज़, वो बहारों में ज़रा कम ही मिला करता है फ़राज.,

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता

न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं

वो मेरी पहली मोहब्बत, वो मेरी पहली शिकस्त फिर तो पैमाने-वफ़ा सौ मर्तबा मैंने किया

कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना, फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते.,

अपने ही होते हैं जो दिल पे वार करते हैं फ़राज़ वरना गैरों को क्या ख़बर की दिल की जगह कौन सी है.

हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए, तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था..

ऐसा डूबा हूँ तेरी याद के समंदर में “फ़राज़”दिल का धड़कना भी अब तेरे कदमों की सदा लगती है

इतनी सी बात पे दिल की धड़कन रुक गई फ़राज़, एक पल जो तसव्वुर किया तेरे बिना जीने का.,

तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त

सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं सो हम बहार पे इल्ज़ाम धर के देखते हैं

अकेले तो हम पहले भी जी रहे थे, क्यूँ तन्हा से हो गए हैं तेरे जाने के बाद..

तड़प उठु भी तो ज़ालिम तेरी दुहाई ना दूं मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी तुझे दिखाई ना दूं

चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई और अपनी रुसवाई का न जाने क्यूं आया है तुम्हारा ख़याल शायद ,ऐसे ही

तुम्हारी दुनिया में हम जैसे हजारों हैं फ़राज़, हम ही पागल थे जो तुम्हे पा के इतराने लगे.,

तू भी तो आईने की तरह बेवफ़ा निकला, जो सामने आया उसी का हो गया..

कोई मुन्तजिर है उसका कितनी शिद्दत से फ़राज़, वो जानता है मगर अनजान बना रहता है।

सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं

मेरे जज़्बात से वाकिफ है मेरा कलम फ़राज़, मैं प्यार लिखूं तो तेरा नाम लिख जाता है.,

कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जाना, फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते।

इस अहद-ए-ज़ुल्म में मैं भी शरीक हूँ जैसे मिरा सुकूत मुझे सख़्त मुजरिमाना लगा

चाहने वाले मुक़द्दर से मिला करते हैं फ़राज़, उस ने इस बात को तस्लीम* किया मेरे जाने के बाद.,

किताबों से दलीलें दूं या खुद को सामने रख दूं, वो मुझ से पूछ बैठी हैं मुहब्बत किसको कहते हैं।

Ahmad Faraz की मातृभाषा पश्तो होने के बावजूद उन्हें उर्दू से बेहद प्यार और लगाव था. Ahmad Faraz ने उर्दू में एम.ए. की डिग्री ली थी।

तोड़ दिया तस्बी को इस ख्याल से फ़राज़ क्या गिन गिन के नाम लेना उसका जो बेहिसाब देता है.,

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलेंगे,जिस तरह सूखा हुए फूल किताब में मिले।

मोहब्बत के अंदाज़ जुदा होते हैं फ़राज़ किसी ने टूट के चाहा और कोई चाह के टूट गया.

फ़राज़ जब छोटे थें तो एक बार उनके वालिद ने उनके लिए एक कश्मीरा ख़रीदा था. मगर वो अपने भाई को मिलने वाले सूट से नाराज़ थे सो, उन्होंने उसी वक़्त लिखा था

वफ़ा की लाज में उसको मना लेते तो अच्छा था फ़राज़ अना की जंग में अक्सर जुदाई जीत जाती है।

ये वफ़ा उन दिनों की बात है फ़राज़, जब लोग सच्चे और मकान कच्चे हुआ करते थे.,

क्यों उलझता रहता है तू लोगों से फ़राज़, जरूरी तो नहीं वो चेहरा सभी को प्यारा लगे.,

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