230+ Dr Kumar Vishwas Shayari In Hindi | कुमार विश्वास की प्रसिद्ध शायरी

Dr Kumar Vishwas Shayari In Hindi , कुमार विश्वास की प्रसिद्ध शायरी
Author: Quotes And Status Post Published at: July 20, 2023 Post Updated at: August 2, 2023

Dr Kumar Vishwas Shayari In Hindi : जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं ,जब बाबा हमें बुलाते हैं , हम जाते हैं , घबराते हैं , जमाना अपनी समझे पर, मुझे अपनी खबर यह हैतुझे मेरी जरुरत है, मुझे तेरी जरुरत है

पूर्णिमा की अनघ चांदनी सा बदन मेरे आगोश मे यूं पिघलता रहा चूड़ियों से भरे हाथ लिपटे रहे सुर्ख होठों से झरना सा झरता रहा

रंग दुनियाने दिखाया है निराला, देखूँहै अंधेरे में उजाला, तो उजाला देखूँआईना रख दे मेरे सामने, आखिर मैं भीकैसा लगता हूँ तेरा चाहने वाला देखूँ !!

उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती, हमको ही खासकर नहीं मिलती |

हमने सेहरे के संग बाँधी, अपनी सब मासूम खताएँ |

आना तुम मेरे घर अधरों पर हास लिए |

मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊँगा, जागती रहना तुझे तुझ से चुरा ले जाऊँगा।

दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है?आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है|

जब जल्दी घर जाने की इच्छा , मन ही मन घुट जाती है ,जब कॉलेज से घर लाने वाली , पहली बस छुट जाती है ,

हम शंकित सच पा अपने, वे मुग्ध स्वयं की घातों पर |

ओ अनजाने आकर्षण से ! ओ पावन मधुर समर्पण से !

दिल के तमाम ज़ख्म, तेरी हाँ से भर गए, जितने कठिन थे रास्ते वो सब गुजर गए।

हम को यारों ने याद भी न रखा‘जौन’ यारों के यार थे हम तो

उसने सौंपा नही मुझे मेरे हिस्से का वजूद उसकी कोशिश है की मुझसे मेरी रंजिश* भी रहे

एक शर्त पर मुझे निमन्त्रण है मधुरे स्वीकार सफ़ाई मत देना! अगर करो झूठा ही चाहे, करना दो पल प्यार सफ़ाई मत देना

कौन सी शै मुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा

चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपन सुहाने हैं ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं

मिलते रहिए कि मिलते रहने से,मिलते रहने का सिलसिला हूँ मैं..!!

तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है|

मौसमों मे रहे ‘विश्वास’ के कुछ ऐसे रिश्ते कुछ अदावत* भी रहे थोडी नवाज़िश* भी रहे

औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है|

शायरी को नज़र नहीं मिलती, मुझको तू हीं अगर नहीं मिलती |

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है|

रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है, कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|

रूह-जिस्म का ठौर-ठिकाना चलता रहता है , जीना-मरना ,खोना-पाना चलता रहता है !

जो भी तुम चाहो फ़क़त चाहने से मिल जाए, ख़ास तो होना पर इतने भी ख़ास मत होना |

उम्मीदों का फटा पैरहन,रोज़-रोज़ सिलना पड़ता है,तुम से मिलने की कोशिश में,किस-किस से मिलना पड़ता है

बात करनी है, बात कौन करे, दर्द से दो-दो हाथ कौन करे |

उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे,वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे,मेरी पलको से फिसल जाता हैं चेहरा तेरा,ये मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे..!!

सोचता हूँ कि उसकी याद आख़िर,अब किसे रात भर जगाती है..!!

जब उंच -नीच समझाने में , माथे की नस दुःख जाती हैं ,तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है ,और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भरी लगता है !!

ओ सहज सरल पलकों वाले ! ओ कुंचित घन अलकों वाले !

लेकिन इन बातों से किंचिंत भी अपना धैर्य नहीं खोना, मेरे मन की सीपी में अब तक तेरे मन का मोती है |

कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ

आसमाँ चूमे मेरे पँख तेरी रहमत से और किसी पेड की डाली पर रिहाइश भी रहे

तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा, साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा |

कौन-सी शै तुझको पहुँचाएगी तेरे शहर तक ये पता तो तब चलेगा जब पता ले जाऊँगा

हँसते गाते स्वीकार, मुझे तू याद न आया कर |

हिम्मत ऐ दुआ बढ़ जाती हैहम चिरागों की इन हवाओ सेकोई तो जाके बता दे उसकोदर्द बढ़ता है अब दुआओं से

खुद को आसान कर रही हो ना, हम पे एहसान कर रही हो ना |

हम को हरगिज़ नहीं ख़ुदा मंज़ूरया’नी हम बे-तरह ख़ुदा के हैं

आहटों से बहुत दूर पीपल तले वेग के व्याकरण पायलों ने गढ़े साम-गीतों की आरोह – अवरोह में मौन के चुम्बनी- सूक्त हमने पढ़े

इन उम्र से लम्बी सड़को को, मंज़िल पे पहुंचते देखा नहीं,बस दोड़ती फिरती रहती हैं, हम ने तो ठहरते देखा नहीं..!!

हमने कभी न रखा स्वयं को अवसर के अनुपातों पर |

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज सुनाई देती है ,जब दर्पण में आँखों के नीचे झाई दिखाई देती है ,

मूझे पता चला मधुरे तू भी पागल बन रोती है, जो पीड़ा मेरे अंतर में तेरे दिल में भी होती है |

सुख-दुःख वाली चादर घटती-बढती रहती है , मौला तेरा ताना-बाना चलता रहता है ! याद दफ्फतन दिल में आती-जाती रहती है , सांसों का भी आना-जाना चलता रहता है !

आँखें की छत पे टहलते रहे काले साये,कोई पहले में उजाले भरने नहीं आया,कितनी दिवाली गयी, कितने दशहरे बीते,इन मुंडेरों पर कोई दीप न धरने आया..!!

ओ मेरे पहले प्यार, मुझे तू याद न आया कर |

जब साड़ी पहने एक लड़की का एक फोटो लाया जाता है ,जब भाभी हमें मनाती हैं फोटो दिखलाया जाता है..!!

सूरज पर प्रतिबंध अनेकों और भरोसा रातों पर नयन हमारे सीख रहे हैं हँसना झूठी बातों पर

खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना, इश्क़ तो करना, मगर देवदास मत होना, देखना, चाहना, फिर माँगना, या खो देना, ये सारे खेल हैं, इनमे उदास मत होना।

गम में हूँ य़ा हूँ शाद मुझे खुद पता नहींखुद को भी हूँ मैं याद मुझे खुद पता नहींमैं तुझको चाहता हूँ मगर माँगता नहींमौला मेरी मुराद मुझे खुद पता नहीं”

* रंजिश – बुरी भावना, असहमति * अदावत – दुशमनी * नवाज़िश – दया, मेहरबानी

सोचता हूँ कि उस की याद आख़िरअब किसे रात भर जगाती है

चंद चेहरे लगेंगे अपने से,खुद को पर बेक़रार मत करना,आख़िरश दिल्लगी लगी दिल पर,हम न कहते थे प्यार मत करना..!!

तान भावना की है शब्द – शब्द दर्पण है, बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है |

हर ओर शिवम-सत्यम-सुन्दर ,हर दिशा-दिशा मे हर हर हैजड़-चेतन मे अभिव्यक्त सतत ,कंकर-कंकर मे शंकर है…”

वक़्त के क्रूर छल का भरोसा नहीं, आज जी लो कल का भरोसा नहीं, दे रहे हैं वो अगले जन्म की खबर, जिनको अगले ही पल का भरोसा नहीं।

माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी, बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी |

वो जो खुद में से कम निकलते हैं, उनके ज़ेहनों में बम निकलते हैं, आप में कौन कौन रहता है, हम में तो सिर्फ हम निकलते हैं।

बार-बार दिलवाले धोखे खाते रहते हैं , बार-बार दिल को समझाना चलता रहता है !

तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा|साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|

मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक रोज़ जाता रहा, रोज़ आता रहा तुम ग़ज़ल बन गईं, गीत में ढल गईं मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा

तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा| साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा|

मुझे तू याद न आया कर ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे !

सौंपकर उन अंधेरों को सब प्रश्न हम इक अनोखी दीवाली मनाते रहे देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे

रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है|

हमला है चार सू दर-ओ-दीवार-ए-शहर कासब जंगलों को शहर के अंदर समेट लो

ये वक़्त बोहोत ही नाजुक है, हम पर हमले दर हमले हैं, दुश्मन का दर्द यही तो है, हम हर हमले पर संभले हैं।

हमला है चार सू दर-ओ-दीवार-ए-शहर का,सब जंगलों को शहर के अंदर समेट लो..!!

दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं ,उसके दिल में भैया , तेरे जैसे प्यारे जज्बात नहीं ,

जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं ,जब बाबा हमें बुलाते हैं , हम जाते हैं , घबराते हैं ,

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