Banaras Shayari In Hindi : बनारस से आस्था है बनारस से दिल का लगाव है, हम बनारसी है गुरु हमपर बाबा का आशीर्वाद है। मोहब्बत ढूढने निकले थे जनाब कुछ लम्हे याद आ गए वो लम्हे फिर से बिताने हम अस्सी घाट आ गए।
तेरी भक्ति का सफर बहुतसुहाना है मेरा दिल सिर्फमहाकाल तेरा ही दीवाना है
गंगा के घाटों की रौनकजैसे एक सपना सा लगता है,अनजान कोई भी होबनारस सबको अपना सा ही है।
लोग कहते है किसके दम पे उछलताहै तू इतना मैने भी कह दिया जिनकीचिलम के हुक्के की दम पर चल रहीये दुनिया है उन्हीं महाकाल केदम पे उछलता ये बंदा है
जब सुकून नही मिलता दिखावे की बस्ती मेंतब खो जाता हूँ मेरे महाकाल की मस्ती में
हमें ढूंढना इतना मुश्किल नहीं है मेरे दोस्तबस जिस महेफिल में महाकाल की आवाज गूंज रही हो वहा चले आना
हम महाकाल के नाम की शमा केछोटे से परवाने हैंकहने वाले कुछ भी कहेहम तो महाकाल के दिवाने हैं
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥
माथे का तिलक कभी हटेगा नही और जब तक जिन्दा हूँतब तक महाकाल का नाम मुँह से मिटेगा नही
अपन की तो बस इतनी सी कहानी हैबालक है हम उसकेजिसकी दुनिया दिवानी हैजय भोले
वो लम्हा मेरी ज़िन्दगी का बड़ा अनमोल होता हैमेरे महाकाल जब तेरी बातें तेरी यादें तेरा माहौल होता हैजय महाकाल
जिसके नाथ हो स्वयं भोलेनाथवो कैसे हुआ अनाथ
खुशबु आ रही हैं कहीँ से गांजे और भांग कीशायद खिड़की खुली रह गयी हैं मेरे महांकाल के दरबार की
“यहाँ बनारस नदी की धारा में ही महसूस होती है, अत्युत्तम और अनुपम शान्ति का आनंद”
तुम जिने में ख़ुशी रखते होंगे अपने सहर में हमे मरने का जुनून है, ई बनारस है गुरु यहां जिने से ज्यादा मरने में सुकून है।
गंगा में है विश्व समाया, जीवन का जलधार बनारस। आय- अनार्य, वैष्णव -शैव, भेद न करता कभी बनारस।
“बनारस एक ऐसी आत्मा को जगाता है जो आपकी मंदिरीले हृदय को नया जीवन देती है”
बनारस में गंगा की घाट परबड़े गुम-सुम से बैठे हो,किसी की बात दिल पर लगी हैया किसी से दिल लगा बैठे हो.
जब इस दुनिया से मेरी विदाई तो इतनी मोहलत मेरी सांसो को देनाएक बार और महाकाल कह लेने देना
मुश्किल मे तो मेरे भी हालातपड़े थेमै जीत गया क्योकिसाथ मे महाकाल खड़े थे
सोचता था की मैं सोचता हूँ तुझे बस सुकून में, आग लगी घर मे और मैं तुझे ही इस कहर मे सोचता हूँ
बनारस में मणिकर्णिका घाटजीवन के सत्य को 24 घंटे दिखाता है,इस घाट पर कुछ देर बैठने मात्र सेही आध्यात्म और सत्य का ज्ञान होजाता है.
पृथ्वी पर जल, अन्न और सुवचन ये तीन ही रत्न हैं परंतु मूों के द्वारा पत्थर के टुकड़ों को रत्न का नाम दिया जाता है।
इतना ना सजा करो मेरे महाकालआपको नज़र लग जायेगीऔर उस मिर्ची की क्या औकातजो आपकी नज़र उतार पाएगी
“दस बार पढ़ो और गणित की खोयी हुई ज्ञान को भी याद रखो, पर गंगा को देखकर जो तुम्हारी होवत है वह दिल में समाना चाहिए”
आपका होना जरूरी नहीं,आपका एहसास ही काफी हैबनारस की शाम और घाट की चाय होतो दूरियां कहां बाकी है।
यहां सब गुरु हैं, ना कोई चेला मस्तमौला अंदाज न कोई झमेला।
जीवन की सुधा अध्यात्म के रस में है,स्वयं ही भगवान शिव बनारस में है.
भागना मत मौत से एक एहसान चढ़ा देगीजीवन के बाद म्रत्यु तुझे महादेव से मिला देगी
मैं अगर फूल हूंतो भोले तू पानी हैजब तक तू है जिंदगी मेमेरी तब तक कहानी है
होंगे तुम्हारे यहाँ बेड-टी और काफ़ी के दीवाने सुबह-ए-बनारस की सुरुवात मस्त चाय से होती है।
मैं बैठ गया अस्सी घाट परबनारस में यूं दिन गुजर गएना तेरा इश्क़ याद रहा, तेरी बातें भी भूल गए ।
काशी में तू पग बढ़ासारा संसार तेरे कदमों में होगा,माँ गंगा में डुबकी लगापवित्र निर्मल तेरा मन होगा।
ढूँढता हूँ खुद में ही खुद को खुद ही, अब मेरा मुझमें में ही हैं कुछ नही शामिल।
जैसे तिल मेँ तेल हैज्यो चकमक मे आगतेरा शंभू तुझ में हैतू जाग सके तो जाग
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥
ओ खइके पान बनारस वालाखुल जाए बंद अकल का तालाफिर तो ऐसा करे धमालसीधी कर दे सबकी चालओ छोरा गंगा किनारे वाला
प्रतिकूलतामुपगते हि विधौ विफलत्वमेति बहुसाधनता।अवलम्बनाय दिनभर्तुरभूत्र पतिष्यतः करसहस्रमपि॥
तुम सुबह ए बनारस की द्रृश्य हो,हम तेरे दीदार को बेकरार प्रिये !
महाकाल नाम की चाबी ऐसी जो हर ताले को खोलेकाम बनेगे उसके सारे जो जय श्री महाकाल बोले
यह हमारा,यह दूसरे का , ऐसा खुद्र बुद्धि वाले ही सोचा करते हैं। विशाल ह्रदय वालों के लिये पूरा संसार ही अपना है – कौइ पराया नहीं है।
ना शिकवा तकदीर से ना शिकायत अच्छीमहादेव जिस हाल मे रखे वही जिंदगी अच्छी
यह कह कर मेरे दुश्मन मुझे छोड़ गयेकि ये तो महाकाल का भक्त हैपंगा लिया तो महाकाल नंगा कर देंगेजय श्री महाकाल
मेरे महाकाल तुम्हारेबिना मै शून्य हूँ तुमसाथ हो महाकालतो मै अनंत हूँ
घाट हो बनारस की लहरों की आवाज हो हवा में सुकून होहर साँस में तेरा नाम हो, मैं बैठूं हर शाम जहाँ, वो बनारस की घाट हो !
जिंदगी का सफर जब हम खत्म कर जायेंगेहमें यमराज नहीं महादेव लेने आयेंगे
सजा कितनी भी दो फिरभी आराध्य मेरे तुम ही हो
कर्म तेरे अच्छे है तो किस्मत तेरी दासी है,नियत तेरी अच्छी है तो घर में मथुरा काशी है.
मृत्युलोक पर पुण्य सजा विश्वनाथ दरबारगंगा जिस तट से बहे करे जगत उद्धार
कोई और सितम हो तो इल्तेज़ा हैं कर दो बाक़ी, इंतेहा पसंद लोगो मे अब मैं बिल्कुल नही शामिल।
हम तो चेले भी उनके हैजिनका कोई गुरु नहीं था जय महाकाल
माँ गंगा ने अपनी धारा से जिसे संवारा है,बड़ा खूबसूरत अस्सी घाट का किनारा है.
गंगा के घाटो की रौनक जैसे एक सपना सा लगता हैअनजान कोई भी हो कशी विश्वनाथ सबको अपना सा ही है
सारा ब्राम्हॉंन्ड झुकता हैजिसके शरण मे मेरा प्रणामहै उन महाकाल के चरण मे
भटक भटक के ये जग हारासंकट में दिया ना कोई साथसुलझ गई हर एक समस्यामहाकाल ने जब पकड़ा हाथ
मूकं करोति वाचालं, पङ्गुं लङ्घयते गिरिम।यत्कृपा तमहं वन्दे, परमानन्दमाधवम्॥
झांका जब उसकी निगाहो मे मैने, इक शांत समन्दर मे कोई आकाश बैठा था…
पागल सा बच्चा हूँ पर दिल से सच्चा हूँथोड़ा सा आवारा हूँ पर भोलेनाथ तेरा ही दीवाना हूँ
तु कहती तो तेरी आरज़ु करते, हम भी तेरी जुस्तज़ु करते…
जीवन में सुकून का सुंदर एहसास है काशी,जहाँ सबको मोक्ष मिलती है वह धाम है काशी।
मेहनताना यही मिलता हैं मुझे ज़िन्दगी का, हर ज़ख्म हर रात भरता है हर सुबह नया हो जाता है।
इश्क़ ढूंढने निकले थेपुराने लम्हें याद आ गये,उन लम्हों को बिताने हमगंगा तट अस्सी घाट आ गये.
शिव खोजने से नहीं मिलतेउनमे खो जाने से मिलते हैहर हर महादेव
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
जरा रूपं हरति, धैर्यमाशा, मॄत्यु: धर्मचर्यामसूया॥
अपनी परेशानिया लगने लगी आसान मुझे, दो रोटी खातिर किसी को पसीना बहाते देखा हैं…
“काशी के घाटों पर नाचती गंगा, जैसे भव्य संस्कृति की ताँड़ बजा रही है”
कर्ता करे न कर सके शिव करे सो होयेतीन लोक नौ खंड में महाकाल से बड़ा ना कोए
तैरना है तो नदी में तैरो नालो में क्या रखा हैप्यार करना है तो महादेव से करो इन बेवफाओं में क्या रखा है
तुुलसी मंदिर, संकटमोचन, सर्व ज्ञान का केन्द्र बनारस। हस्त शिल्प,स्वर्ण आभूषण, सदियों से राजेन्द्र बनारस।
गरज उठे गगन सारासमंदर छोड़े अपना किनाराहिल जाये जहान साराजब गूंजे महाकाल का नारा
गांजे मे गंगा बसी चीलम में चार धामकंकर मे शंकर बसे और जग में महाकाल
जो खाता है पान बनारस वाला, खुल जाता है उसके बंद अक्ल का ताला.