Bachpan Ki Shayari In Hindi : बचपन की दोस्ती थी बचपन का प्यार था तू भूल गया तो क्या तू मेरे बचपन का यार था कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से,कहीं भी जाऊँ मेरे साथ-साथ चलते हैं ।
ले चल मुझे बचपन की,उन्हीं वादियों में ए जिन्दगी…जहाँ न कोई जरुरत थी,और न कोई जरुरी था.!!
होठों पे मुस्कान थी कंधो पे बस्ता था..सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था..!!
खुदा अबके जो मेरी कहानी लिखनाबचपन में ही मर जाऊ ऐसी जिंदगानी लिखना
“ रिक्शेवाले का घर के बाहर आवाज लगाना,रोज नया बहाना कर के स्कूल न जाना,कुछ ऐसा ही होता थाबचपन में हमारा कारनामा…!!
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लोभले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे जहां चाहा रो लेते थे!!पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए!!और आंसूओं को तनहाई!!
फूलों सी मुस्कान है तेरी बहना,हंसती है तू, दिल मेरा खुश होता है,तू उद्दास होती है तो दिल मेरा रोता है,ऐसा प्यारा भाई-बहन का रिश्ता हमारा।
बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे, तब दिल नहीं सिर्फ़ खिलौने टूटा करते थे, अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता और बचपन में जी भरकर रोया करते थे
“ बचपन में किसी के पास घड़ी नही थी,मगर टाइम सभी के पास था,अब घड़ी हर एक के पास है,मगर टाइम नही है….!!
रोने की वजह भी न थी न हंसने का बहाना था क्यो हो गए हम इतने बडे इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था…..
ख़ुदा अबकी बार जो मेरी कहानी लिखना,बचपन में ही मर जाऊ ऐसी जिंदगानी लिखना.
लेख के इस हिस्से में हम बचपन पर आधारित कुछ कविताएं लेकर आए हैं, जिनको पढ़ते ही एक बार फिर से बचपन के सुनहरे दिन याद आ जाएंगे।
कहा भुल पाते है हम बचपन की बाते,सबको याद आती है वो बचपन की बरसाते,भीग जाते थे हम जब बारिशों में,याद आती है वो दोस्तो की मुलाकाते।
मोहल्ले में अब रहता हैपानी भी हरदम उदाससुना है पानी में नाव चलानेवाले बच्चे अब बड़े हो गए
बारिश की बूंद की तरह है मेरी बहना,जो खुद बिखर कर घर को सजाती है,वो आती है तो घर में नए रंग भर जाती है,और मेरे दिल को खुशियों से भर जाती है।
आज बचपन का टूटा हुआ खिलौना मिला…उसने मुझे तब भी रुलाया था,उसने मुझे आज भी रुलाया है
देखो बचपन में तो बस शैतान था, मगर अब खूंखार बन गया हूँ!
“एक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकून होगा,ना दिल में कसक होगी, ना सर में जूनून होगा।”
रोने की वजह भी न थीन हंसने का बहाना थाक्यो हो गए हम इतने बडेइससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था…..
आओ भीगे बारिश में उस बचपन में खो जाएं क्यों आ गए इस डिग्री की दुनिया में चलो फिर से कागज़ की कश्ती बनाएं।
होंठों पर मुस्कान थी , कंधो पर बसता था सुकून के मामले में वो ज़माना सस्ता था
हंसने की भी वजह ढूँढनी पड़ती है अब, शायद मेरा बचपन, खत्म होने को है!
जिंदगी जब भी सुकून दे जाती है,ए बचपन हमें तेरी याद आती है
पता नहीं उसके हाथों में क्या जादू है?माँ के जैसी रोटियांकोई बना ही नहीं सकता।
“ कितना पवित्र था वो बचपन का प्यार,ना भूख थी जिस्म की न था सम्पति का लालच,थी तो बस एक दूजे के साथ की चाहत…!!
बचपन की दोस्ती सभी निभाते हैं, जरूरत पड़े तो पर बिन बुलाये आते हैं.
चलो के आज बचपन का कोई खेल खेलें,बडी मुद्दत हुई बेवजह हँसकर नही देखा।
कितने खुबसूरत हुआ करते थे ✒ बचपन के वो दिन,सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी .
“ कागज की कश्ती थी पानी का किनारा था,खेलने कि मस्ती थी दिल ये आवारा था,कहां आ गए समझदारी के दलदल में,वो नादान बचपन ही प्यारा था….!!
फिर से नज़र आएंगे किसी और में हमारे ये पल सारे, बचपन के सुनहरे दिन सारे।
ऐ उम्र,कुछ कहा मैने,पर शायद तूने सुना नहीतू छीन सकती है बचपन मेरा,पर बचपना नही..
प्यार छोड़ो तुम मेरी दोस्त बनी रहना,प्यार मुकर जाता हैं लेकिन यार नहीं..Pyaar chodo tum meri dost bani rahna,Pyaar mukar jata hain lekin yaar nahi..
सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त बचपन वाला इतवार अब नहीं आता.
सारी उम्र कट जाती है तन्हाई और अकेलेपन में,ऐ दोस्त, जिंदगी की असली खुशियाँ होती है बचपन में।
गांव की तुलना तुमसे क्या करू ए शहरी बाबू तुम तो अपने पिता का आशीर्वाद लेने वृद्धा आश्रम जाते हो !
फिर से ✒बचपन लौट रहा है शायद, जब भी नाराज होता हूँ खाना छोड़ देता हूँ.
बेफ़िक्र हँसी और ख़ुशियों का ख़ज़ाना था , कितना खूबसूरत वो बचपन का ज़माना था
नींद तो बचपन में आती थी,अब तो बस थक कर सो जाते है।
बचपन से जवानी के सफर में, कुछ ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, तब रोते-रोते हँस पड़ते थे, अब हँसते-हँसते रो पड़ते हैं.
मंजिलों को ढूंडते हम कहॉं खो गए,न जाने क्यूँ हम इतने बड़े हो गए,
मुस्कुरा कर रह जाता हूँ !!जब भी याद आती है वो मस्ती !!और जब भी याद आती है !!विद्यालय की वो पुरानी बस्ती !!
हमारी गलतियों को छुपा करहमेशा जो सबसे बचाती रहती हैवो माँ ही होती है
जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरहमैंने मिट्टी भी जमा की खिलौने भी लेकर देखे.
जी लेने दो ये लम्हे इन नन्हे कदमों को, उम्रभर दौड़ना है इन्हें बचपन बीत जाने के बाद।
कभी किताबों का बहाना था तो कभी कलम का बहाना था, बचपन का प्यार था वो मेरा ये सब उनके पास जाने का बहाना था।
मैंने मिट्टी भी जमा की, खिलौने भी लेकर देखे,जिन्दगी में वो मुस्कुराहट नही आई जो बचपन में देखे.
उम्र के साथ ज्यादा कुछ नहीं बदलता, बस बचपन की ज़िद्द समझौतों में बदल जाती है।
तो कभी हुआ नहीं, गले भी लगे और छुआ नहीं।।
ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर,बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर,काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।
हम भी मुस्कुराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोईशिकवा तो नहींतेरे बिना पर ज़िन्दगी भी लेकिनज़िन्दगी तो नहीं
कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिनसिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी
अच्छे समय में तोसभी पास आ जाते हैं,लेकिन बुरे समय मेंएक माँ ही होती है, जो हमारीताकत और हौसला बनकरहमारे साथ रहती है।
“ दूर मुझसे हो गया बचपन मगर,मुझमें बच्चे सा मचलता कौन है…!!
वो बचपन की अमीरी न जाने कहां खो गईजब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे…।
अब वो खुशी असली नाव मे बैठकर भी नही मिलती है, जो बचपन मे कागज की नाव को पानी मे बहाकर मिलती है।
हर एक पल अब तो बस गुज़रे बचपन की याद आती है, ये बड़े होकर माँ दुनिया ऐसे क्यों बदल जाती है।
अगर ख्वाहिशों के आगे कोई जहान है तो,रब करे वो जहान मेरी बहन को मिल जाए।
“ कुछ ऐसा था मेरे बचपन का सफर,जिसमें मुझे नींद नहीं आती थीकहानी के बगैर….!!
बचपन में आकाश को छूता सा लगता था,इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं।
जब-जब कागज पर लिखा मैंने माँ का नाम, कलम अदब से बोल उठी हो गये चारों धाम।
खेला करते थे कूदा करते थे , मौज मस्ती में जीया करते थे , वो मासूम बचपन ही था जहां सभी से दोस्ती कर लीया करते थे
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझेकहाँ गया मेरा बचपन ख़राब कर के मुझे
वो बचपन भी क्या दिन थे मेरेन फ़िक्र कोई न दर्द कोईबस खेलो, खाओ, सो जाओबस इसके सिवा कुछ याद नही।
तेरी यादें भी मेरे बचपन के खिलौने जैसी हैं,तन्हा होती हूँ तो इन्हें लेकर बैठ जाती हूँ…।
कुछ यूं कमाल दिखा दे ऐ जिंदगी !!वो बचपन ओर बचपन के दोस्तो !!से मिला दे ऐ जिंदगी !!
#बचपन भी कमाल का था खेलते_खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर आँख “बिस्तर” पर ही खुलती थी !!
बचपन भी कमाल का थाखेलते खेलते चाहे छत पर सोयेया जमीन पर लेकिनआँख बिस्तर पर ही खुलती थी। ..
मैंने कभी भगवान को नहीं देखा है, लेकिन मुझे इतना यकीन हे की, वो भी मेरी माँ की तरह होगा!
देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपनातजरबे आए थे संजीदा बनाने के लिए- ज़फ़र गोरखपुरी (साभार-रेख़्ता)
मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है उम्र का बेहतरीन हिस्सा है - जोश मलीहाबादी
उम्र-ऐ-जवानी फिर कभी ना मुस्करायी बचपन की तरह;मैंने साइकिल भी खरीदी, खिलौने भी लेके देख लिए।