2054+ Bachpan Ki Shayari In Hindi | बचपन पर शायरी

Bachpan Ki Shayari In Hindi , बचपन पर शायरी
Author: Quotes And Status Post Published at: August 25, 2023 Post Updated at: October 7, 2023

Bachpan Ki Shayari In Hindi : बचपन की दोस्ती थी बचपन का प्यार था तू भूल गया तो क्या तू मेरे बचपन का यार था कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से,कहीं भी जाऊँ मेरे साथ-साथ चलते हैं ।

“ बहुत ही संगीन ज़ुर्म को,हम अंज़ाम देकर आए हैं,बढ़ती उम्र के साए से,कल बचपन चुरा लाए हैं….!!

कितने खुबसूरत हुआ करते थे,बचपन के वो दिन,सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से,दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी।

घर में धन, दौलत, हीरे, जवाहरात सब आए, लेकिन जब घर में मां आई तब खुशियां आई।

दहशत गोली से नही दिमाग से होती है, और दिमाग तो हमारा ✒ बचपन से ही खराब है.

मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावनवो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी

बचपन पर शायरीहंसने की भी, वजह ढूँढनी पड़ती है अब;शायद मेरा ✒ बचपन, खत्म होने को है.

हंसने की भी, वजह ढूँढनी पड़ती है अब, शायद मेरा बचपन, खत्म होने को है.,

हमने किन मुश्किल परिस्थितियों में पढ़ाई की है,कभी कभी तो मास्टर जी हमेंमूड फ्रेश करने के लिये ही कूट दिया करते थे

ना जाने वो बच्चा किस खिलौने से खेलता है, जो दिन भर बाजार में खिलौने बेचता है.,

मै उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह, वो मेरे साथ है बचपन की आदतों की तरह

परायों से जीतने में इतनी ख़ुशी नहीं मिलती जितनी कभी-कभी अपनों से हार कर मिल जाती है।

ज़िन्दगी का हर पल कुछ ऐसा रहे की मर कर भी अमर रहे।

सीधा साधा भोला भाला मैं ही सब से सच्चा हूँ, कितना भी हो जाऊं बड़ा माँ आज भी तेरा बच्चा हूँ।

“ न थी हंसने की वजह न थारोने का बहाना,जैसा भी था अच्छा थाबचपन का जमना….!!

वो भोली-सी बातें, वो मीठी-सी शरारतें, वो अजीब-सी आदतें, वो बेपरवाह चाहतें, मज़ेदार होता था जीना, जिसमे फ़िक्र थी कोई ना।

“ कॉलेज के होस्टल में खूब मस्ती की,होस्टल लाइफ को भी काफी अच्छे से जिया,कॉलेज खत्म होने के बाद,हर वक्त उन ”दिनों” को याद किया….!!

कच्ची नहीं पक्की है ये दोस्ती,रिश्तो से नहीं प्यार से बनी है ये दोस्ती,भाई-बहन के प्यार कि जीवन भर की है ये दोस्ती।

तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं,रात भी आयी और चाँद भी था, मगर नींद नहीं।

मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोईआज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में

वो बचपन क्या था, जब हम दो रुपए में जेब भर लिया करते थे।वो वक़्त ही क्या था, जब हम रोकर दर्द भूल जाया करते थे।।

शाम से आँख में नमी सी है, आज फिर आप की कमी सी है दफ़्न कर दो हमें के साँस मिले, नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

बिना समझ के भी, हम कितने सच्चे थे, वो भी क्या दिन थे, जब हम बच्चे थे।

नहीं चाहिए मुझे शहर के वाटर पार्कऔर न उनके बनावटी झूले,आज चाहिए वह गांव के आम का पेड़जो हमें पुकारे,अपनी डाल ऊँची करे औ' बोले - आ छू ले।

“ बचपन की हर शाम होती थी सुहानी,जब नानी की गोद में बैठकरसुनते थे परियों की कहानी….!!

कितना पवित्र था वो बचपन का प्यार,ना भूख थी जिस्म की न था सम्पति का लालच,थी तो बस एक दूजे के साथ की चाहत।

बचपन का टूटा हुआ खिलौना मिला उसने मुझे आज भी रुलाया और कल भी

वैसे तो कहा जाता है,कि किसी के चले जाने सेजिंदगी रुक नहीं जाती,लेकिन अगर जिंदगी में “माँ” ना होतो जिंदगी चल भी नहीं पाती।

झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम,यह उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम।

“ कब लौटेंगे वो बचपन के दिन,जो नहीं गुजरते थे मस्ती के बिन…!!

बचपन से पचपन तक का सफ़र यूं बीत गया साहब, वक़्त के जोड़ घटाने में सांसे गिनने की फुरसत न मिली।

इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में, ढूँडता फिरा उस को वो नगर नगर तन्हा ~जावेद अख़्तर

वो पूरी ज़िन्दगी रोटी,कपड़ा,मकान जुटाने में फस जाता है,अक्सर गरीबी के दलदल में बचपन का ख़्वाब धस जाता है।

बचपन में स्कूल का सिलेबस पूरा करना भले भारी लगता था हमें,पर बड़े हुए तो जाना, जिंदगी के Questions का तो सिलेबस हीं नहीं होता।

दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन मेंसो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम- इफ़्तिख़ार आरिफ़

जब भी आवाज लगाता है खिलौने वाला,कितने बच्चों की ख्वाहिशें आज भी टूट जाती है.

“ मुमकिन है हमें गाँवभी पहचान न पाए,बचपन में ही हम घरसे कमाने निकल आए…!!

न तलब थी जीतने की। न उम्मीद थी हारने की। क्या बचपन था मेरे रब, हर चीज मे वजह थी जीने की।

कॉलेज के होस्टल में खूब मस्ती की,होस्टल लाइफ को भी काफी अच्छे से जिया,कॉलेज खत्म होने के बाद,हर वक्त उन ”दिनों” को याद किया।

सातों आलम सर करने के बा’द इक दिन की छुट्टी ले कर घर में चिड़ियों के गाने पर बच्चों की हैरानी देखो

अपना बचपन भी बड़ा कमाल का हुआ करता था,ना कल की फ़िक्र ना आज का ठिकाना हुआ करता था।

चले आओ कभी टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े से, वो बचपन की तरह फिर से मोहब्बत नाप लेते हैं।

ज्यादा वो नहीं जीता जो ज्यादा सालों तक ज़िंदा रहता है, बल्कि ज़्यादा वो जीता है जो ख़ुशी से जीता है।

लड़कियों की इज्जत किया करो, क्यूंकि बेज्ज़ती करने के लिये, उनके भाई ही काफी हैं !

“ काग़ज़ की नाव भी है,खिलौने भी हैं बहुत,बचपन से फिर भीहाथ मिलाना मुहाल है…!!

इसलिए ये महीना ही नहीं शामिल उम्र की जंतरी में हमारी उसने एक दिन कहा था की शादी है इस फरवरी में हमारी

किताबों से प्यार ना था हमे, पर स्कूल की बड़ी आस थी, होती थी जब छुट्टी खाने की, खेलने की हमे लालच थी, बड़े सुहाने दिन थे बचपन के, स्कूल भी बड़ी खास थी।

झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हमये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम.

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से,कहीं भी जाऊँ मेरे साथ-साथ चलते हैं ।

बिना समझ के भी, हम कितने सच्चे थे,वो भी क्या दिन थे, जब हम बच्चे थे।

घुटनों से रेंगते – रेंगते कब पैरो पर खड़ा हो गया, माँ तेरी ममता की छाँव में न जाने कब बड़ा हो गया.

जिस के लिए बच्चा रोया था और पोंछे थे आँसू बाबा ने वो बच्चा अब भी ज़िंदा है वो महँगा खिलौना टूट गया

किसने कहा, नहीं आती वो बचपन वाली बारिश,तुम भूल गए हो शायद अब नाव बनानी कागज़ की।

अजीब सौदागर है ये वक़्त भी, जवानी का लालच दे के बचपन ले गया।

हँसते खेलते गुज़र जाये वैसी शाम नही आती,होंठो पे अब बचपन वाली मुस्कान नही आती।

अपना भी एक 💯 वसूल है,, गद्दारों से 👪 यारी नहीं और यारों से 👿 गद्दारी नहीं ।

बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी,अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है।

जिन्दगी जब भी सुकून दे जाती हैं, ऐ बचपन हमें तेरी याद आती हैं.

वो ✒ बचपन की नींद अब ख्वाब हो गई,क्या उमर थी कि, शाम हुई और सो गये.

दूर मुझसे हो गया बचपन मगर,मुझमें बच्चे सा मचलता कौन है।

मेरे रोने से जिसे ज्यादा तकलीफ होती हैवो कोई और नहीं है मेरी माँ है।

अल्लाह फिर से लौटा दे मुझे वो बचपन के दिन, ज़िन्दगी में कम से कम सुकून से बैठने के लिए रविवार का इंतज़ार तो नहीं करना पड़ेगा।

बचपन से जवानी के सफर में,कुछ ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते हैं,तब रोते-रोते हँस पड़ते थे,अब हँसते-हँसते रो पड़ते हैं.

ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लोभले छीन लो मुझ से मेरी जवानीमगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावनवो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी।

कुछ नहीं चाहिए तुझ से ऐ मेरी उम्र-ए-रवाँमेरा बचपन मेरे जुगनू मेरी गुड़िया ला दे

कभी कंचे तो कभी लट्टू बचपन में खिलौने कम नहीं थे, पर बचपन के दिन काफी कम थे।

कुछ अठन्नी और चार आनों में,कुछ मुफ़्त मूमफली के दानों में,कुछ बंद हो चुकी दुकानों में,कुछ असभ्यता के मुहानों में,

वो शरारत,वो मस्ती का दौर था, वो बचपन का मज़ा ही कुछ और था।

मुमकिन है हमें गाँव भी पहचान न पाए,बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए ।

वो बचपन था या सपना आज भी यकीन नहीं होता, उस दौर हक़ीक़त भी सपनों से हसीं हुआ करती थी।

अब तक हमारी उम्र का बचपन नहीं गया घर से चले थे जेब के पैसे गिरा दिएदुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम

कंधे की जिम्मेदारियों को बढ़ते देखा है !!मैंने अपने अंदर के !!बचपन को मरते देखा है !!

स्कूल का वो बस्ता मुझे फिर से थमा दे माँ, जिंदगी का सफ़र मुझे बड़ा मुश्किल लगता है।

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