Bachpan Ki Dosti Shayari In Hindi : कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से, कहीं भी जाऊँ मेरे साथ-साथ चलते हैं चलो के आज बचपन का कोई खेल खेलें, बडी मुद्दत हुई बेवजाह हँसकर नही देखा
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम।
चले आओ कभी टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े सेवो ✒ बचपन की तरह फिर से मोहब्बत नाप लेते हैं.
हम बाकी सभी रिश्तों के साथ पैदा होते हैं,पर दोस्ती ही एक मात्र रिश्ता है,,जिसे हम खुद बनाते हैं।
कुछ ग़ज़लों में कुछ गानों में,कुछ मशीन से दूर इंसानों में, कुछ बड़े होने के अरमानों में!!
अपनी उम्र से अनजान वो बच्चा खेलने की उम्र में खिलौने बेच रहा था।
जरूरत लिखनी थीमैं दोस्त लिखकर आ गया
आपके पास दोस्तो का सहारा हैमगर ये दोस्त आपका पुराना हैइस यार को कभी मत भूल जानाये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
बीता हुआ कल गज़ब कहानी है शाम नई और दोस्ती पुरानी है।
हम कभी अपने से खफा हो नहीं सकते,दोस्ती के रिश्ते बेवफा हो नहीं सकते।आप भले हम भूल के सू जाओ,हम आपको याद किए बिना सू नहीं सकते।
कुछ लोगों के साथ खून का रिश्ता नहीं होता,लेकिन फिर भी उनसे अपनो वाली खुशबू आती।
स्कूल में सब होम वर्क नकल करते थे,बेस्ट फ्रेंड के लिए दूसरे से लड़ते थे,स्कूल की लड़ाई दूसरे दिन भूल जाते थे,फिर सभी आपस में दोस्त बन जाते थे।
शौक जिन्दगी के अब जरूरतों में ढल गये हैं, शायद बचपन से निकलकर हम बड़े हो गये हैं.
“ कैसे भूलू बचपन की यादों को मैं,कहाँ उठा कर रखूं किसको दिखलाऊँसंजो रखी है कब से कहीं बिखर ना जाए,अतीत की गठरी कहीं ठिठर ना जाये…!!
मेरा बचपन भी साथ ले आया,गाँव से जब भी आ गया कोई।
ऐ खुदा अपनी अदालत मे मेरी ज़मानत रखना,मैं रहूँ या ना रहूँ मेरे दोस्तो को सलामत रखना।
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो,भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी,मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन,वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी।
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब,मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं।
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हमये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम
वो दोस्त मेरी नजर में बहुत मायने रखते हैजो वक्त आने पर मेरे सामने आईने रखते है
सुकून की बात मत कर ए ग़ालिबबचपन वाला इतवार अब नही आता !
वातावरण को जो महका दे उसे इत्र कहते हैं,जीवन को जो महका दे उसे ही मित्र कहते हैं।
ले चल मुझे बचपन की उन्हीं वादियों में ए जिन्दगी,जहाँ न कोई जरुरत थी और न कोई जरुरी था.!!
बंधना-बंधाना पसंद ना था, सुनना-सुनाना पसंद ना था, हम कितनी भी बात मनवाले, कोई हमसे बात मनवाये पसंद ना था।
हँसते खेलते गुजर जाए वैसी शाम नहीं आती हैं, होठों पर अब बचपन वाली मुस्कान नहीं आती हैं.
झूठ बोलते थे ,फिर भी कितने सच्चे थे ,हम उन दिनो की बात है जब बच्चे थे हम
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला,अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला।
तेरी दोस्ती अब हम इस तरह निभाएंगे,तुम रोज खाफा होना हम रोज मनाएंगे।पर मान जाना माने से,वर्ना ये भीगी पालके लेके कहेंगे।
बचपन में आकाश को छूता सा लगता था,इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं।
◆ हो सके तो बचपन के दोस्त को कभी मत भूलना साथ छोड़ देते है तब यही काम आते है
शौक जिन्दगी के अब जरुरतो में ढल गये, शायद बचपन से निकल हम बड़े हो गये।
जो निकले थे मुझे मिटाने,डर गए रास्ते में खड़ा मेरा दोस्त देख कर।
ये दोस्त मिट गया हूँ, फ़ना हो गया हूँ मैं.।इस दर्द-ए-दोस्ती की दवा हो गया हूँ मैं.।!!
जब दिल ये आवारा था, खेलने की मस्ती थी। नदी का किनारा था, कगज की कश्ती थी। ना कुछ खोने का डर था, ना कुछ पाने की आशा थी।
कितनी छोटी सी दुनिया है मेरी, एक मै हूँ और एक दोस्ती तेरी !!
बड़ी हसरत से इंसाँ बचपने को याद करता है ये फल पक कर दोबारा चाहता है ख़ाम हो जाए
मैं ने बचपन की ख़ुशबू-ए-नाज़ुकएक तितली के संग उड़ाई थी
मुखौटे ✒ बचपन में देखे थे, मेले में टंगे हुए, समझ बढ़ी तो देखा लोगों पे चढ़े हुए.
चांद जैसा रोशन कोई औरसितारा हमें जहां में नहीं मिला..दोस्ती तेरे जैसी निभाएऐसा यार कभी गद्दार नहीं निकला..
सारी दुनियाँ मैं ईद है, ? लेकिन हमारा चाँद आज ? भी गुम है.
फिर से बचपन लौट रहा है शायद,जब भी नाराज होता हूँ खाना छोड़ देता हूँ।
माँ और मेरे रिश्ते में ज्यादा फ़र्क़ तो नहीं आया बस बचपन में माँ की डांट से नाराज़ हुआ करते थे, आज माँ की डांट से खफा हो जाते हैं।
खुशियाँ भी हो गई है अब उड़ती चिड़ियाँ, जाने कहाँ खो गई, वो बचपन की गुड़ियाँ।
जिम्मेदारियों ने वक्त से पहलेबड़ा कर दिया साहब,वरना बचपन हमको भी बहुत पसंद था।
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में,फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते.
कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था खेल में भी तो आधा आधा आँगन था - शारिक़ कैफ़ी
मिलो या ना मिलो तुम तुम्हारी मर्जी,लेकिन जाने से पहले सुन लो हमारी अर्जी,दोस्त बनाया है तुमको दिल से,अब तो जान जाने पर ही निकलोगे तुम दिल से।
”घर का बोझ उठाने वाले ब्च्चे की तक़दीर न पूछबचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया”
दर्द बहुत होगा जब छोड़ के जाएंगे,याद बहुत आयेंगे पर आँसू नहीं आएँगे,जब साथ कोई ना दे तो एक बार हमें बुलाना ,स्वर्ग में होंगे तो भी लौट के आएंगे।
चाहे तकलीफ कितनी भी दे,फिर भी सुकून उसी के पास मिलता हैएक दोस्त ही है जो हर वक्त साथ देता है
लोग चेहरा देखते है ,हम दिल देखते है ,लोग सपने देखते है हम सच्चाई देखते है,लोग दुनिया मे दोस्त देखते है,हम दोस्तो मे दुनिया देखते है।
ऐ दोस्त यूँ तो हम तेरी हसरत को क्या कहें,लेकिन ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी नहीं।
बचपन के खुशियों वाला खेल कोई फिर से खिला दे, मेरी दौलत-शोहरत ले ले और मुझे बच्चा बना दे.
हम रहे या न रहे याद की जाएगी अपनी दोस्ती
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी,दोस्त की दोस्त मान लेते हैं।
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे , जहां चाहा रो लेते थे और अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आसुओं को तन्हाई
उड़ने दो परिंदो को अभी शोख़ हवा में फिर लौट के बचपन के जमाने नहीं आते
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो,चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे.
दुश्मनी जम कर करो मगर इतना याद रहे,जब भी फिर दोस्त बन जाये, शर्मिन्दा न हो।
वो पूरी ज़िन्दगी रोटी,कपड़ा,मकान जुटाने में फस जाता है,अक्सर गरीबी के दलदल में बचपन का ख़्वाब धस जाता है।
“ मेरा बचपन भी साथ ले आया,गाँव से जब भी आ गया कोई…!!
“ बचपन में किसी पर भी भरोसा कर लेते थे,छोटी-छोटी बातों के लिए लड़ लेते थे,अब तो न किसी पर भरोसा होता है,और न ही किसी से लड़ना होता है…!!
खेला करते थे कूदा करते थे, मौज-मस्ती में जीया करते थे, वो मासूम बचपन ही था जहां, सभी से दोस्ती कर लिया करते थे।
पतंग नहीं मानो आइना था जैसे आज हवा में उड़ता हुआ मुझे मेरा बचपन दिखाई दिया।
वो बचपन की अमीरी न जाने कहां खो गईजब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे…।
जिंदगी में दोस्त तो बहुत मिल जाएंगे, परंतु सच्ची दोस्ती निभाने वाला दोस्त मिलना नसीब का खेल है।
यकीन नहीं तुझे अगर, तो आज़मा के देख ले,एक बार तू, जरा मुस्कुरा के देख ले।जो ना सोचा होगा तूने, वो मिलेगा तुझको भी,एक बार आपने कदम, बढ़ा के देख ले।
◆ ज़िन्दगी के दो रास्ते एक इश्क़ और दूसरा दोस्ती तक जाते है, एक पर दगा और इल्जाम मिला और दूसरे पर खुशियों का का जाम मिला।
“दोस्ती हमेशा “दो” 2⃣ से ही बनती हैं…जैसे आपकी और हमारी…..
आओ भीगे बारिश में उस बचपन में खो जाएं क्यों आ गए इस डिग्री की दुनिया में चलो फिर से कागज़ की कश्ती बनाएं।
“ क्यों बीत गया वो बचपन,जिसमें मिलता थासभी का अपनापन…!!
ना चाहिए 💵 पैसा और ना चाहिए कार, 🥰 जिंदगी भर साथ चाहिए बस तेरा 🥺 मेरे यार ।
सब कुछ तो हैं, फ़िर क्यों रहूँ उदास..तेरे जैसा मैं भी बन पाता मनमौजी;लतपत धूल-मिट्टी से, लेता खुलकर साँस।