Allama Iqbal Shayari In Hindi : दिल को छू जाने वाली बातें रखी हैं दिल में,हर बार नए रंग भर देती हैं ये मोहब्बत की बारिश। इक इश्क की परछाई बन कर खड़ी है ज़मीन पर,मोहब्बत भी तो खुदा की अदा बन कर खड़ी है।
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं,अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं।
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
अल्लामा इक़बाल ने ज़र्ब-ए-कलीम में तौहीद का एक मिस्रा यह है,कौम क्या चीज है क़ौमों की इमामत क्या है,इसको क्या समझें ये बेचारे दो रकअत के इमाम।
तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ,भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी बड़ा बे अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ..!!
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझको,उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा।
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतज़ार देख..!!
नशा पिला के गिराना तो सब को आता हैमज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा,तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ मे..!!
तैरना है तो समंदर में तैरो नालों में क्या रखा हैं,प्यार करना है तो देश से करो औरों में क्या रखा हैं।
दिल को छू जाने वाली बातें रखी हैं दिल में,हर बार नए रंग भर देती हैं ये मोहब्बत की बारिश।
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने कीनशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख
तिरे इश्क़ की ”इंतिहा” चाहता हूँ,मिरी ”सादगी” देख क्या चाहता हूँ,ये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों को,कि मैं आप का सामना चाहता हूँ।
जफ़ा जो इश्क़ में होती है वो जफ़ा ही नहीं,सितम न हो तो मोहब्बत में कुछ मज़ा ही नहीं।
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को,कि मैं आप का सामना चाहता हूँ..!!
मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने,मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका..!!
दरिया है दिल, तूफानों के लिए तैयार रख,ये तूफान गुज़रेंगे, फिर तेरी जुदाई के बाद।
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने कीनशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
ढूँडता फिरता हूँ मैं ‘इक़बाल’ अपने आप को आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछजू-ए-शीर ओ तेशा ओ संग-ए-गिराँ है ज़िंदगी
जीने की राह में हमेशा खुद को खो देंगे,क्योंकि जीवन उच्च सिरों पर ही चढ़ाने के लिए है।
दिल से जो बात निकलती है अस़र रखती है,पर नहीं ताक़ते परवाज़ मगर रखती है..!!
जब दुश्मन के लहू से भी धुआँ उठ रही थी धरा,खुदा के बंदों ने फौजों का वीरता दिखा दिया।
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ालीख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी,ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़।
हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह ओ शाम तू दौड़ पीछे की तरफ़ ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तू
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं,मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में।
ये जन्नत मुबारक रहे जाहिदों को,कि मैं आपका सामना चाहता हूं..!!
‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में,मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा।
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब मेंया तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
मिलेगा मंज़िल-ए-मक़्सूद का उसी को सुराग़ अँधेरी शब में है चीते की आँख जिस का चराग़
मेरा जूता है जापानी पतलून है इंग्लिश तानी,सर पर लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।
मुमकिन” है कि तू जिसको_समझता है बहारां,औरों की निगाहों में वो “मौसम” हो खिजां का।
तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर ऐसी नमाज़ से गुज़र ऐसे इमाम से गुज़र
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालोतुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
आशाओं की उचाईयों को प्राप्त करना है तुम्हें,दिल में जलती रवानी को सच्चाई बना जाना है।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा,मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा।
रवानगी से हर क़दम पे बदल जाएगी दुनिया,तू जो सोच सके, तू जो कर सके, वही तो है शान तेरी।
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख है देखने की चीज़ इसे बार बार देख
बे-ख़तर कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़,अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी..!!
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल,चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ ।
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदीमुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है
किसी की याद ने जख्मों से भर दिया है सीना,अब हर एक सांस पर शक है के आखरी होगी..!!
गोदी में खेलती हैं, इसकी हज़ारों नदियाँ,गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जनाँ हमारा।
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है।
हंसी आती है मुझे हसरते इंसान पर गुनाह करता है खुद और लानत भेजता है सैतान पर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहलेख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद कि आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात
तेरी दुआ से कज़ा तो बदल नहीं सकती,मगर है इस से यह मुमकिन की तू बदल जाये,तेरी दुआ है की हो तेरी आरज़ू पूरी,मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये।
सुबह को बाग़ में शबनम पड़ती है फ़क़त इसलिए,के पत्ता पत्ता करे तेरा ज़िक्र बा वजू हो कर..!!
तिरे इश्क़ की “इंतिहा ” चाहता हूँमिरी “सादगी” देख क्या चाहता हूँये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों कोकि मैं आप का सामना चाहता हूँ.!
तेरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया,यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी..!!
इक़रार ऐ मुहब्बत ऐहदे ऐ-वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं इक़बाल,हर शख्स खुदी की “मस्ती” में बस अपने खातिर जीता है।
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में हैशिकार-ए-मुर्दा सज़ा-वार-ए-शाहबाज़ नहीं
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब,क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो।
कौन रखेगा याद हमें इस दौर ए खुदगर्जी में,हालत ऐसी है की लोगों को खुदा याद नहीं..!!
अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैंकि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाहीखुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है..!!
और भी कर देताहै दर्द में इज़ाफ़ा,तेरे होते हुए गैरों का दिलासा देना।
ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहींतू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है।
हम जब निभाते है तो इस तरह ”निभाते” है,सांस लेना तो छोड़ सकते है पर दमन यार नहीं।
अल्लामा “इक़बाल” रह० ने ‘फरमाया’ था,की मोहम्मद से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं,ये जहाँ चीज़ है क्या “लौह-ओ-क़लम” तेरे हैं।
महीने-वस्ल के घड़ियों की ‘सूरत’ उड़ते जाते हैं,मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में।
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ललेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
ज़िंदगी इक राज़ है, जिसे समझ नहीं सकते,खुद को तलाशो, तब तुम्हें यहाँ नज़र आएगा।