Quotes Meaning In Hindi : कार्य शुरु न करना बुद्धि का पहला लक्षण है।शुरु किये हुए कार्य को समाप्त करना बुद्धि का दूसरा लक्षण है। दरिद्रता में मोक्ष नहीं, और संपन्नता में कोई बन्धन नहीं।किन्तु दरिद्रता हो या संपन्नता, मनुष्य ज्ञान से ही मुक्ति पाता है।
तेजस्वी और क्षमाशील व्यक्ति से कभी भी अतिकठोर आचरण नहीं करना चाहियें।अति घर्षण से चन्दन की लकडी में भी अग्नि उत्पन्न होती हैं।
अति सर्वनाश का कारण है।इसलिये अति का सर्वथा परिहार करे।
भले ही कोई व्यक्ति मेरु पर्वत की तरह स्थिर, चतुर, बहादुर दिमाग का हो।लालच उसे पल भर में घास की तरह खत्म कर सकता है।
कार्य शुरु न करना बुद्धि का पहला लक्षण है।शुरु किये हुए कार्य को समाप्त करना बुद्धि का दूसरा लक्षण है।
सभी दिशाओं से नेक विचार मेरी ओर आएँ।
दो व्यक्तियों के साथ होने का कोई अज्ञात कारण होता है।वास्तव में प्रेम बाह्य कारणों पर निर्भर नही होता।
चींटी द्वारा इकट्ठा किया गया अनाज, मक्खी द्वारा जमा किया गया शहद,और लोभियों द्वारा संचित किया गया धन, समूल ही नष्ट हो जाता है।
रात खत्म होकर दिन आएगा, सूरज फिर उगेगा, कमल फिरखिलेगा- ऐसा कमल में बन्द भँवरा सोच ही रहा था,और हाथी ने कमल को उखाड़ फेंका।
आप सुख साधन रहित, परिवर्तनहीन, निराकार, अचल, अथाह जागरूकता और अडिग हैं, इसलिए अपनी जागृति को पकड़े रहो ।
सौ हाथ से कमाओ और हजार से दान करो।
अत्यधिक इच्छाएँ नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए ।अपने कमाये हुए धन का धीरे धीरे उपभोग करना चाहिये ।
स्वाभिमानी लोग अपमानजनक जीवन के जगह में मृत्यु पसंद करते हैं।आग बुझ जाती है लेकिन कभी ठंडी नहीं होती।
अहिंसा (मे) दृढ़ स्थिति हो जाने पर उस (योगी के) निकट (सब का) वैर छूट जाता है।
कोई राजा सारी पृथ्वी पर शासन करता हो, वह कृतार्थ नहीं होता ।कोई साधु, पत्थर और स्वर्ण को समान समझता है, वह कृतार्थ (संतुष्ट) है ।
जिसके पास साहस है और जो मेहनत करता है, उसके लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है।
दरिद्रता में मोक्ष नहीं, और संपन्नता में कोई बन्धन नहीं।किन्तु दरिद्रता हो या संपन्नता, मनुष्य ज्ञान से ही मुक्ति पाता है।
अत्यन्त क्रोधी व्यक्ति आँखें रखते हुए भी अन्धा होता है।
जिस पर आक्षेप नहीं कीया जाता, उसे सहमति के रूप में लिया जाता है।
पथिक व्यक्ती को मार्ग (अंत में) पता चल जाता ही है।
बुढ़ापा और मृत्यु ये दोनों भेड़ियों के समान हैंजो बलवान, दुर्बल, छोटे और बड़े सभी प्राणियों को खा जाते हैं ।
जो कार्य संपन्न करना चाहते हैं, वे सिंह की तरह अधिकतम वेग से कार्य पर टूट पड़ते हैं।
प्रातःकाल उठने वाले अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करतें है ।
चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है ।
जिस परिवार में पति अपनी पत्नी से और पत्नी अपने पति से सुखी होती है, वहां कल्याण निश्चित रूप से स्थायी होता है।
हर कार्रवाई के लिए, एक जवाबी कार्रवाई होनी चाहिए। हर प्रहार के लिए एक प्रति-प्रहार और उसी तर्क से,हर चुंबन के लिए एक जवाबी चुंबन।
कार्यों में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए, शीघ्रता कार्यविनाशिनी होती है।
वर्षा ऋतु के प्रारंभ में कोयलें चुप हो जाती है,क्योंकि बोलने वाले जहाँ मेंढक हो वहाँ चुप रहना ही शोभा देता है।
निरंतर अभ्यास से प्राप्त निश्चल और निर्दोष विवेकज्ञान हान(अज्ञानता) का उपाय है।
मूर्ख के पाँच लक्षण हैं; घमंड, दुष्ट वार्तालाप, क्रोध, जिद्दी तर्क, और अन्य लोगों की राय के लिए सम्मान की कमी।
अपने लिए थोड़ा और दूसरों के लिए सब कुछ!
यदि शांति या युद्ध में समान वृद्धि हो तो उसे (राजा को) शांति का सहारा लेना चाहिए।
बीती बातों पर दुःख न मनाये। वर्तमान की तथा भविष्य की बातों पर ध्यान दें।
यदि जीवन के प्रथम भाग में विद्या, दूसरे में धन,और तीसरे में पुण्य नही कमाया, तो चौथे भाग में क्या करोगे ?
महान लोग अपने कर्तव्यों में देरी नहीं करते हैं ।
विस्तृत एवं अर्थहीन, इन दोनों ही में मेरी जिह्वा उदासीन रही।साक्षिप्त और दृढ़ (सारयुक्त)—वाक्पटुता के ये लक्षण हैं।
जो लोग इच्छाओं के सेवक हैं वे पूरी दुनिया के सेवक बन जाते हैं।जिनके लिए इच्छा एक सेवक है, उनके लिए पूरी दुनिया भी एक सेवक है।
वाद-विवाद, धन के लिये सम्बन्ध बनाना, माँगना, अधिक बोलना,ऋण लेना, आगे निकलने की चाह रखना – यह सब मित्रता के टूटने में कारण बनते हैं।
जिसका कार्य कभी ठंढ, ताप, भय, प्रेम, समृद्धि,या उसका अभाव से बाधित नहीं होता, केवल वही वास्तव में श्रेष्ठ है।
देना, लेना, रहस्य बताना और उन्हें सुनना, खानाऔर खिलाना – ये छह प्रेम के संकेत हैं।
जो कर्म करने के पश्चात, करते हुए या करने से पहले शर्म आए,एसे सभी कर्म तामसिक माने गये हैं।
जो सब अन्यों के वश में होता है, वह दुःख है। जो सब अपने वश में होता है, वह सुख है।यही संक्षेप में सुख एवं दुःख का लक्षण है।
धन, जन, और यौवन पर घमण्ड मत करो; काल इन्हें पल में छीन लेता है।इस माया को छोड़ कर इस ज्ञान से ब्रह्मपद में प्रवेश करो।
जिस गुण से आजीविका का निर्वाह हो और जिसकी सभी प्रशंसा करते हैं,अपने स्वयं के विकास के लिए उस गुण को बचाना और बढ़ावा देना चाहिए।
जीवों पर करुणा एवं मैत्री कीजिये।
यह भी चला जाएगा |
“आपका खुश रहना ही आपका बुरा चाहने वालो के लिए सबसे बडी सजा हैं.”
“कोशिश करना न छोड़े, गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल सकती हैं.”
“जिंदगी अगर अपने हिसाब से जीनी हैं तो कभी किसी के फैन मत बनो.”
“जब गलती अपनी हो तो हमसे बडा कोई वकील नही जब गलती दूसरो की हो तो हमसे बडा कोई जज नही.”