855+ Karma Bhagavad Gita Quotes In Hindi | Bhagavad Gita Karma Quotes in Hindi

Karma Bhagavad Gita Quotes In Hindi , Bhagavad Gita Karma Quotes in Hindi
Author: Quotes And Status Post Published at: October 13, 2023 Post Updated at: April 2, 2024

Karma Bhagavad Gita Quotes In Hindi : कर्म से ही विजय है भाग्य भी कर्म पर निर्भर है कर्म है तो सफलता तय है ! मनुष्य को परिणाम की चिंता किए बिना लोभ- लालच और निस्वार्थ और निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए !

हे पार्थ जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते है,उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ..!!

“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।” – साधुओं का रक्षण करने और दुष्टों कानाश करने के लिए।

हे अर्जुन ! जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा पूरे विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, तब मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ ।

विवरण: परमात्मा को जो अपने मन में हमेशा रखते हैं, संकट उनसे कोसों दूर रहता है

“यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभते’र्जुन।” – हे अर्जुन! जो अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करके कर्म करता है।

अपने ही कुल के नाश से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, कुलधर्म के नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में केवल पाप ही फैलता है।

लोग आपके अपमान के बारे मे हमेशा बात करेंगे,सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बदतर है..!!

“ हे अर्जुन , स्वर्ग प्राप्त करने और वहांकई वर्षों तक वास करने के पश्चात एकअसफल योगी का पुन : एक पवित्रऔर समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है…!!

योगरहित पुरुष में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होतीऔर उसके मन में भावना भी नहीं होतीऐसे भावनारहित पुरुष को शांति नहीं मिलती।

इस सम्पूर्ण संसार में कोई भी व्यक्ति महान नही जन्मा होता है। बल्कि उसके कर्म उसे महान बनाते हैं।

“ समझदार व्यक्ती जब संबंधनिभाना बंद कर देता है,तो समज लेना उसकेआत्मसम्मान को कहीन कही ठेस पहुंची है…!!!

विवरण: अपनी सही जिम्मदारियों को करने में कोई झिजक नहीं होना चाहिए।

“ अहंकार, घमण्ड, क्रोध और निष्ठुरताये अज्ञान से उत्पन्न हुए आसुरी प्रकृतिके लोगों के भुण हैं, इनका त्यागकरना ही हमें अच्छा इंसान बनाता है…!!!

जो लोग ह्रदय को नियंत्रित नही करते है,उनके लिए वह शत्रु के समान काम करता है..!!

ईश्वर की शरण में निःस्वार्थ भाव से जाएं,क्योंकि आपको क्या चाहिए, उन्हें पता है।

जो जीवन के मूल्य को जानता हो,इससे उच्चलोक की नहीं अपितु अपयश प्राप्ति होती है..!!

“यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभते’र्जुन।” – हे अर्जुन! जो अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करके कर्म करता है।

“ जो होने वाला है वो होकर ही रहता है, और जो नहीं होने वाला वह कभी नहीं होता,ऐसा निश्चय जिनकी बुद्धि में होता है,उन्हें चिंता कभी नही सताती है…!!

इंसानियत दिल में होती हैहैसियत में नहीं, ऊपर वालाकर्म देखता है वसीयत नहीं ।

“ मनुष्य जिस रूप मेंईश्वर को याद करता है,ईश्वर भी उसे उसी रूप में दर्शन देते हैं…!!

“ किसी का अच्छा ना कर सको तो,बुरा भी मत करना…!!

ईश्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता-पिता जैसे गुरुजनों की पूजा करना तथा पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारीरिक तपस्या है।

“ जब इंसान अपने काम में आनंद खोजलेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते है…!!

मोह उसी का करो जिस पर आपका अधिकार है, जिस पर आपका अधिकार ही नहीं है, उसका मोह भी नहीं करना चाहिए।

हमेशा याद रखना, बेहतरीन दिनों के लिए बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है।

व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को वश में रखने के लिए बुद्धि और मन को नियंत्रित रखना होगा।

“ सफलता की राह तकले जायेंगे संदीप माहेश्वरी केये प्रेरणादायक विचार,जानिए कौन से है वो….!!!

न कांक्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा।

अगर परमात्मा तुम्हें कष्ट के पास ले आया है,तो अवश्य ही वो तुम्हें कष्ट के पार भी ले जाएगा ।

मन अशांत है और इसे नियंत्रित करना कठिन है,लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है..!!

“ हे अर्जुन ! जो व्यक्ति अपनेसमान सर्वत्र सम देखता है ,चाहे वह दुख हो या सूख हो ,वह परम योगी माना जाता है…!!!

अहंकार, घमण्ड, क्रोध और निष्ठुरता ये अज्ञान से उत्पन्न हुए आसुरी प्रकृति के लोगों के भुण हैं, इनका त्याग करना ही हमें अच्छा इंसान बनाता है।

मन को प्रभु के साथ जोड़ दो जहाँ प्रभु जाएं,वहाँ मन जाए और जहाँ मन जाए वहाँ प्रभु साथ रहें ।

समझदार व्यक्ती जब संबंध निभाना बंद कर देता है, तो समज लेना उसके आत्मसम्मान को कही न कही ठेस पहुंची है।

वह व्यक्ति जो अपनी मृत्यु के समय मुझे याद करते हुए अपना शरीर त्यागता है,वह मेरे धाम को प्राप्त होता है और इसमें कोई शंशय नही है..!!

“ जब इंसान की जरूरत बदल जाती हैतब इंसान के बात करने का तरीकाबदल जाता है…!!!

बदल जाओ वक्त के साथ या फिर वक़्त बदलना सीखो, मजबूरियों को मत कोशों हर हाल में चलना सीखो

“ ज़रूरी नहीं हर बार आपकेशब्दों को सही समझा जाए,इसलिए कभी कभी चुपरहना ही ज़्यादा बेहतर होता है….!!

“ जिस मनुष्य के पास सब्र की ताकत है,उस मनुष्य की ताकत का कोईमुकाबला नहीं कर सकता….!!!

मुश्किलें केवल बेहतरीन लोगों के हिस्से में आती है, क्योंकि वही लोग उसे बेहतरीन तरीके से अंजाम देने की ताकत रखते हैं।

फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है !

प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को क्रोध और लोभ त्याग देना चाहिए क्योंकि इससे आत्मा का पतन होता है।

निर्बलता अवश्य ईश्वर देता है किन्तु मर्यादा मनुष्य का मन ही निर्मित करता है।

“अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्।” – उसे अविनाशी जान, जिससे यह सब कुछ व्याप्त है।

नरक तिन चीजों से नफरत करता है: वासना, क्रोध और लोभ।

जो मनुष्य फल की इच्छा का त्याग करके केवल कर्म पर ध्यान देता है, वह अवश्य ही जीवन में सफल होता है।

जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वो भी अच्छा ही होगा। – श्री कृष्ण (श्रीमद्‍भगवद्‍गीता)

“ सत्य कभी दावा नहीं करता कि मैं सत्य हूं लेकिन झूठ हमेशा दावा करता हैं कि सिर्फ मैं ही सत्य हूं…!!

मनुष्य को जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए और न ही भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों का प्रयोग करना चाहिए। – श्री कृष्ण (श्रीमद्‍भगवद्‍गीता)

“योगः कर्मसु कौशलम्।” – कर्म में योग ही कुशलता है।

“ बिना फल की कामनाएंही सच्चा कर्म हैईश्वर चरण में हो समर्पणवही केवल धर्म है…!!!

विवरण: अगर हम फल की आशा में कार्य करेंगे तो ना हमारे कार्य सफल हो पाएंगे और ना ही हम अपने लक्ष्य तक पहुँच पाएंगे।

जैसे पानी में तैरती नाम को तूफान उसे अपने लक्ष्य से दूर ले जाता है,वैसे ही इंद्रिय सुख मनुष्य को गलत रास्ते की ओर ले जाता है।

जीवन में यदि खुश रहना है तो अधिक ध्यान उस चीज पर दें, जो आपके पास है उस पर नहीं जो दूसरों के पास है।

“आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।” – जैसे नदी के पानी समुद्र में प्रवेश करते हैं, ठहरते हैं, लेकिन समुद्र की प्रतिष्ठा अचल होती है।

विवरण: इसके विषय में हमने पहले भी बताया जीवन में कर्म करके फल की आशा से जीवन में असफलता प्राप्त होती है ना की सफलता।

“ गीता में कहा गया है कोई भीअपने कर्म से भाग नहीं सकताकर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है…!!

“कार्यमितन्यत्कर्म कौशलम्।” – कर्म को अच्छी तरीके से करना ही कुशलता है।

हे अर्जुन! मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है। – श्री कृष्ण (श्रीमद्‍भगवद्‍गीता)

अर्जुन उवाचदृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते।

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।

जब इंसान अपने काम में आनंद खोज,लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते है।

रोना बंद करो और अपनी तकलीफों से खुद लडना सीखो, क्योंकि साथ देने वाले भी श्मशान से आगे नहीं जाते।

विवरण: लोगों का स्वाभाव, और चरित्र ही आंदोलन को बढ़ावा देता है।

गुरु दीक्षा बिना प्राणी के सब कर्म निष्फल होते है..!!

मनुष्य को परिणाम की चिंता किए बिना लोभ- लालच और निस्वार्थ और निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए !

फल की लालसा छोड़कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है।

जो लोग भक्ति में श्रद्धा नहीं रखते, वे मुझे पा नहीं सकते। अतः वे इस दुनिया में जन्म-मृत्यु के रास्ते पर वापस आते रहते हैं।

सिर्फ दुनिया के सामने जीतने वाला ही विजेता नहीं होता, बल्की किन रिश्तों के सामने कब और कहाँ पर हारना है, यह जानने वाला भी विजेता होता है।

जब भी और जहाँ भी अधर्म बढ़ेगा। तब मैं धर्म की स्थापना हेतु, अवतार लेता रहूँगा।

जो लोग बुद्धि को छोड़कर भावनाओं में बह जाते है, उन्हें हर कोई मुर्ख बना सकता है।

“ सच बोलने का साहस कीजिये,परिणाम भुगतने की शक्ति परमात्मा देंगे…!!

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