Geeta Quotes In Hindi : ~ कर्म के बिना फल की अभिलाषा करना, व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है। ~ यह सृष्टि कर्म क्षेत्र है, बिना कर्म किये यहाँ कुछ भी हासिल नहीं हो सकता।
सच्चा धर्म यह है कि जिन बातों को इंसान अपने लिए अच्छा नहीं समझता उन्हें दूसरों के लिए भी प्रयोग ना करें..!
और हमारे साथ जो होने वाला है वह अच्छा ही होगा”
जो महापुरुष मन की सब इच्छाओं को त्याग देता है और अपने आप ही में प्रसन रहता है, उसको निश्छल बुद्धि कहते है।
लोग आपके अपमान के बारे मे हमेशा बात करेंगे ,सम्मानित व्यक्ति के लिए ,अपमान मृत्यु से भी बदतर है ।
जो कर्म प्राकृतिक नहीं है वह हमेशा आपको तनाव देता है.
नरक के तीन द्वार होते है,वासना, क्रोध और लालच।
केवल व्यक्ति का मन हीकिसी का मित्र और शत्रु होता है।
जीवन में सब कुछ खत्म होने जैसा कुछ भी नहीं होता, हमेशा एक नई शुरुआत हमारा इंतजार कर रही होती है।
मेरा तेरा, छोटा बड़ा, अपना पराया,मन से मिटा दो,फिर सब तुम्हारा है और तुम सबके हो।
नर्क के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध और लालच।
जब भी और जहाँ भी अधर्म बढ़ेगा।तब मैं धर्म की स्थापना हेतु,अवतार लेता रहूँगा।
धर्म वही है जो धारण किया हुआ है, जिसे आपका दिल मानता है।
आत्म ज्ञान की तलवार से काटकर अपने हृदय के अज्ञान के संदेह अलग कर दो ,अनुशासित रहो, उठो और कार्य करो ।
Sri Bhagavad Gita, जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं।
हे अर्जुन! जो पुरुष सुख तथा दुख में विचलित नहीं होता और इन दोनों में समभाव रहता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है।
किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।
इतिहास कहता है कि कल सुख था,विज्ञान कहता है कि कल सुख होगा,लेकिन धर्म कहता है, अगर मन सच्चा औरदिल अच्छा हो तो हर रोज सुख होगा।
तब तक उस मनुष्य के जीवन के हर फैसले दूसरे करते रहेंगे”
“सच्ची श्रृद्धा और परमात्मा के प्रति समर्पण तब ही सफल माना जाता है, जब उसमें कोई शंका न हो।”
“जब इंसान सफल होता है तो उसकी सफलता उसका परिचय इस संसार से करवाती है
जीवन न तो भविष्य में है, न अतीत में है, जीवन तो बस इस पल में है। – श्री कृष्ण (श्रीमद्भगवद्गीता)
“मनुष्य अपने जीवन में जो भी कर्म रूपी बीज बोता है,
~ वह व्यक्ति जो अपनी मृत्यु के समय मुझे याद करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है और इसमें कोई शंशय नही है।
हे अर्जुन! मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है। – श्री कृष्ण (श्रीमद्भगवद्गीता)
परिवर्तन प्रकर्ति का नियम है आप एक पल में करोड़पति या कंगाल हो सकते हैं
जब जब इस धरती पर पाप,अहंकार और अधर्म बढ़ेगा,तो उसका विनाश कर पुन: धर्म कीस्थापना करने हेतु,में अवश्य अवतार लेता रहूंगा।
हमेशा दूसरों के कल्याण को ध्यान में रखकर अपना काम करें
मनुष्य अपने विचारो से ऊचाईयाँ भी हो सकता हैऔर खुद को गिरा भी सकता है क्योकि हरव्यक्ति खुद का मित्र भी होता है और शत्रु भी ।
“अति से ज्यादा खाना खाने वाला मानव आलस के रथ का सारथी बनता है, एक योगी की यही पहचान होती है कि वह कम खाते हैं और हरि की महिमा गाते हैं।”
अपने आपको भगवान के प्रति समर्पित कर दो, यही सबसे बड़ा सहारा है, जो कोई भी इस सहारे को पहचान गया है वह डर, चिंता और दुखो से आजाद रहता है।
निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन।पापमेवाश्रयेदस्मान् हत्वैतानाततायिनः।
मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदामुझसे जुड़े रहते हैं और जोमुझसे प्रेम करते हैं !!
व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदी वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे।
जीवन न तो अतीत मे है, और न तो भविष्य मे है जीवन तो केवल इसी पल मे है
जिस प्रकार अग्नि स्वर्ण को परखती है, उसी प्रकार संकट वीर पुरुषों को। – श्री कृष्ण (श्रीमद्भगवद्गीता)
यज्ञ, दान और तपस्या के कर्मों कोकभी त्यागना नहीं चाहिए,उन्हें हमेशा सम्पत्र करना चाहिए।
व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को वश में रखने के लिए बुद्धि और मन को नियंत्रित रखना होगा।
आनन्द अपने अंदर ही निवास करता हैपरन्तु मनुष्य उसे स्त्री मे ,घर मे ,या बाहर के सुखो मे खोज रहा है ।
और इस बात की गलतफहमी भी नहीं होनी चाहिए कि उसकी जरूरत हर किसी को होगी”
हे अर्जुन! प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर,पत्थर, और सोना सभी समान है।
सही कर्म वह नहीं है जिसके परिणाम हमेशा सही हो, अपितु सही कर्म वह है जिसका उद्देश्य कभी गलत ना हो।
मै उन्हे ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़ेरहते है और जो मुझसे प्रेम करते है ।
~ अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
ना कोई मुझे अधिक पसंद है और ना ही कोई मुझे कम पर,
धैर्य रखिए, कभी कभी आपको जीवन मे सबसे अच्छा पाने के लिये सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ता है।
जब ध्यान में महारत हासिल होती है, तो मन एक हवा रहित स्थान पर दीपक की लौ की तरह अटूट होता है।
जब इंसान अपने काम में आनंद खोजलेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते है।
प्रेम हो या प्रार्थना ये तो मालूम नहीं , पर जो आपसे है किसी और से नही ..
मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
~ जब जब इस धरती पर पाप, अहंकार और अधर्म बढ़ेगा। तो उसका विनाश कर धर्म की पुन: स्थापना करने हेतु, मैं अवश्य अवतार लेता रहूंगा।
जन्म लेने वाले के लिए मृत्युउतनी ही निश्चित है, जितना किमृत होने वाले के लिए जन्म लेना।इसलिए जो अपरिहार्य हैउस पर शोक मत करो।
वो सभी अच्छे कर्म उस व्यक्ति के पास वापस लौट कर जरूर आते हैं”
“असफलताओं के तालों को खोलने के लिए इस दुनिया में सिर्फ दो ही चाबी होती है,
भविष्य का दूसरा नाम है संघर्ष।
ज़रूरी नहीं हर बार आपके शब्दों को सही समझा जाए, इसलिए कभी कभी चुप रहना ही ज़्यादा बेहतर होता है।
यदि कोई व्यक्ति विश्वास के साथ इच्छित वस्तु को लेकर नित्य चिंतन करता है, तो वह जो चाहे वह बन सकता है।
हे अर्जुन! मैं वह काम हूँ,जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।
आप यहां खाली हाथ आए हैं, और आप खाली हाथ जाएंगे। जो आज तुम्हारा है वह कल किसी और का था, और कल किसी और का होगा
वह जो वास्तविकता मे मेरे उत्कृष्ट जन्म औरगतिविधियो को समझता है ,वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नही लेताऔर मेरे धाम को प्राप्त होता है ।
जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, और जो होगा वह भी अच्छा होगा।
मै समय हूँ – सबका नाशक मै आया हूँदुनिया को उपयोग करने के लिए ।
“योगियों की यही पहचान होती है कि उनकी इंद्रियां उनके अधीन होती हैं।”
हमारा खुद पर विश्वास होना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि हम अपने रास्ते पर खुद चलते है।
अपने ही कुल के नाश से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, कुलधर्म के नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में केवल पाप ही फैलता है।
मानव कल्याण ही भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य है, इसलिए मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करते समय मानव कल्याण को प्राथमिकता देना चाहिए।
वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।
“शांत मन से ही लक्ष्य की प्राप्ति की जाती है, मन की अशांति से मानव का पतन होता है।”
हे अर्जुन, बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याणके लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए।
अकेले रहना तुम्हें यह भी सिखाता है कि वास्तव मे तुम्हारे पास स्वयं के अलावा और कुछ भी नहीं।
जो पुरुष न तो कर्मफल की इच्छा करता है,और न कर्मफलों से घृणा करता है,वह संन्यासी जाना जाता है।
कृष्णा की कही हुयी बातें पढ़ के बहुत अच्छा लगता है। एक दिन जरूर गीता पढ़ने की कोशिश करेंगे।
रोना बंद करो और अपनी तकलीफों से खुद लडना सीखो, क्योंकि साथ देने वाले भी श्मशान से आगे नहीं जाते।