Geeta Quotes In Hindi : ~ कर्म के बिना फल की अभिलाषा करना, व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है। ~ यह सृष्टि कर्म क्षेत्र है, बिना कर्म किये यहाँ कुछ भी हासिल नहीं हो सकता।
जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ।
जिसे हम सिर्फ ईश्वर की भक्ति से ही प्राप्त कर सकते हैं”
गीता में कहा गया है कोई भीअपने कर्म से भाग नहीं सकताकर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है।
आपकी हार और जीत आपकी सोच पर निर्भर करती हैं, इसीलिए मान लो तो हार ही होगी और ठान लो तो जित ही होगी।
वो मनुष्य जीवन में कभी भी आनंद और सफलता को प्राप्त नहीं कर पाता”
मानव कल्याण ही भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य है,इसलिए मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करतेसमय मानव कल्याण को प्राथमिकता देना चाहिए।
~ मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ, मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम भी मैं ही हूँ।
क्योंकि अर्जुन ने भी युद्ध भूमि में जाने से पहले श्री कृष्ण को ही चुना था”
“यदि परिस्थितियां आपके हक़ में नहीं है, तो विश्वास कीजिए कुछ बेहतर आपकी तलाश में है।”
निर्माण केवल पहले सेमौजूद चीजो का प्रक्षेपण है ।
डर धारण करने से भविष्य के दुख का निवारण नहीं होता है। डर केवल आने वाले दुख की कल्पना ही है।
कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं। – श्री कृष्ण (श्रीमद्भगवद्गीता)
पृथ्वी मे जिस प्रकार मौसम मे परिवर्तनआता है उसी प्रकार जीवन मे भी सुख –दुख आता जाता रहता है ।
सम्पूर्ण संसार में जब अधर्म और पाप बढ़ता है, तो मैं धर्म की पुनः स्थापना के लिए धरती पर अवतार लेता हूं।
~ कर्म के बिना फल की अभिलाषा करना, व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है।
सभी काम छोड़कर बस भगवान मे पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ ,मै तुम्हे सभी पापो से मुक्त कर दूंगा ।
हमेशा संदेह करने वाले के लिए न तो इस दुनिया में और न ही कहीं और कोई खुशी है।
धरती पे जिस तरह मौसम मे बदलव आता जाता रहता है उसी तरह जीवन मे सुख-दुःख आते रहते है
हे अर्जुन! जो जीवन के मूल्य को जानता हो।इससे उच्चलोक की नहींअपितु अपयश प्राप्ति होती है।
~ सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और।
~ परमात्मा को प्राप्ति के इच्छुक ब्रम्हचर्य का पालन करते है।
इन वर्णसंकरकारक दोषों से, कुलघातियों द्वारा सनातन कुल, धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं।
जब परिवार के सदस्य अप्रिय लगने लगे और पराए अपने लगने लगे तो समझ लीजिए विनाश का समय आरंभ हो गया है।
अहंकार, घमण्ड, क्रोध और निष्ठुरता ये अज्ञान से उत्पन्न हुए आसुरी प्रकृति के लोगों के भुण हैं, इनका त्याग करना ही हमें अच्छा इंसान बनाता है।
जो मुझे सब जगह देखता हैऔर सब कुछ मुझमें देकता हैउसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँऔर न वह मेरे लिए अदृश्य होता है।
“संशय से बाहर निकलकर कर्म को पहचानने वाला व्यक्ति ही सर्वश्रेष्ठ कहलाता है।”
“जिस प्रकार दीपक में तेल समाप्त होने पर दीपक बुझ जाता है,
“जीवन की सफलता हर उम्र छोटी प्रयासों का योग होता है,
~ फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है।
जब इंसान अपने काम में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते है।
अगर साफ नियत से मांगा जाए, तो ईश्वर नसीब से बढक़र देता है।
धरती पर जिस प्रकार मौसम मेंबदलाव आता है, उसी प्रकारजीवन में भी सुख-दुख आता जाता रहता है।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है,जैसा वह विश्वास करता है,वैसा वह बन जाता है।
“निस्वार्थ भाव से की गई सेवा या दान ही सात्विक गुण का आधार होता है, सात्विकता से ही संसार को ऊर्जा प्राप्त करता है।”
~ जो दान कर्तव्य समझकर, बिना किसी संकोच के, किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जाए, वह सात्विक माना जाता है।
परिवर्तन संसार का नियम है समय के साथ संसार मे हर चीज परिवर्तन के नियम का पालन करती है ।
हे अर्जुन, ऐसा कुछ भी नहीं, चेतन या अचेतन, जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता हो। – श्री कृष्ण (श्रीमद्भगवद्गीता)
समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी किसी को कुछ नही मिलता है।
सज्जन व्यक्तियों को सदैव अच्छा व्यवहार करना चाहिए। क्योंकि इन्हीं के पद चिन्हों पर सामान्य व्यक्ति अपने रास्ते चुनता है।
मन की शांति से बढ़कर इससंसार में कोई भी संपत्ति नहीं है।
हर मनुष्य के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और ईर्ष्या जैसी भावनाएं हमें अपने और दूसरों के प्रति नुक्सान पहुंचा सकती हैं।
हे अर्जुन ! मन अशांत है और इसेनियंत्रित करना कठिन है,लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
“भय के होने पर मन की स्थिति भयानक हो जाती है, वीर वही है जो कर्मज्ञान का अनुसरण करता हो।”
प्रेम, सहिष्णुता और निस्वार्थता को अपने जीवन में लाना चाहिए।
बिना फल की कामनाएंही सच्चा कर्म हैईश्वर चरण में हो समर्पणवही केवल धर्म है।
मानव कल्याण ही भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य है,इसलिए मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करतेसमय मानव कल्याण को प्राथमिकता देना चाहिए।
“हमारे मन का अहंकार उस वृक्ष की तरह होता है
हमेशा याद रखना, बेहतरीन दिनों के लिए बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है।
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न इस लोक में है, और ना ही परलोक में।
पहली चाबी होती है दृढ़ संकल्प और दूसरी कठोर परिश्रम”
“जिस मनुष्य के अंदर ज्ञान की कमी और ईश्वर में श्रद्धा नहीं होती,
हे अर्जुन! कोई भी इंसान जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मों से महान बनता है।
इंसान हमेशा अपने भाग्य को कोसता है यह जानते हुए भी कि भाग्य से भी ऊंचा उसका कर्म है जिसके स्वयं के हाथों में है।
और अपने ज्ञान को हमेशा एक ही रूप से देखता है”
व्यक्ति जो चाहे बन सकता हैयदि विश्वास के साथ इच्छित वस्तुपर लगातार चिन्तन करे ।
अपकीर्ति, मृत्यु से भी बुरी है। – श्री कृष्ण (श्रीमद्भगवद्गीता)
“जिस प्रकार प्रकृति में समय-समय पर बदलाव आता है,
~ वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है।
प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को क्रोध और लोभ त्याग देना चाहिए क्योंकि इससे आत्मा का पतन होता है।
जीवन का आनंद ना तो भूतकाल में है और ना भविष्यकाल में। बल्कि जीवन तो बस वर्तमान को जीने में है।
जो व्यवहार आपको दूसरों से पसंद ना हो,ऐसा व्यवहार आप दूसरों के साथ भी ना करें।
मनुष्य की मानवता उसी वक़्त नष्ट हो जाती है, जब उसे दूसरों के दुःख पर हँसी आने लगती है।
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा॥
आप कितने भी अच्छे कर्म कर लो, लेकिन समाज आपके बुरे कार्यों को ही सदैव याद रखता है।इसलिए लोग क्या कहेंगे यह सोचने से बेहतर है कि आप अपना कर्म करें।
धरती पर जिस प्रकार मौसम में बदलाव आता है, उसी प्रकार जीवन में भी सुख-दुख आता जाता रहता है।
हे अर्जुन ! जो कोई भी व्यक्ति जिस किसी भीदेवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है,में उस व्यक्ति का विश्वास उसी देवता में दृढ़ कर देता हूं।
कोई भी इंसान जन्म से नहीं बल्किअपने कर्मो से महान बनता है।
तो फिर क्यों हम दूसरों में बदलाव लाने को सरल सोचते हैं”
भगवद गीता के अनुसार नरक के तीन द्वार होते है, वासना, क्रोध और लालच।
~ अपकीर्ति मृत्यु से भी बुरी है।
जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है।
हे अर्जुन! जो जीवन के मूल्य को जानता हो। इससे उच्चलोक की नहीं अपितु अपयश प्राप्ति होती है।