Bhagavad Gita Quotes In Hindi: “बुद्धिहीन व्यक्ति के लिए स्वर्ण और गंदगी में कोई अंतर नहीं होता है.” “मैं अपने कार्यों से बाध्य नहीं हूं क्योंकि मुझे अपने किए गए कर्मों के फल की कोई इच्छा नहीं है.
“जो कर्म में अकर्म देखता है और अकर्म में कर्म देखता है, वह सब मनुष्यों में ज्ञानी है और सब प्रकार के कर्मों में लीन होकर दिव्य अवस्था में रहता है.”
“ मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदामुझसे जुड़े रहते हैं और जोमुझसे प्रेम करते हैं…!!!
जो होने वाला है वो होकर ही रहता है, और जो नहीं होने वाला वह कभी नहीं होता,ऐसा निश्चय जिनकी बुद्धि में होता है, उन्हें चिंता कभी नही सताती है।
“ हमेशा संदेह करने सेखुद का ही नुकसान होता है,संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न ही इस लोक में है और न ही किसी और लोक में….!!
ज्ञान व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप मे देखता है,वही सही मायने मे देखता है..!!
जो दान कर्तव्य समझकर, बिना किसी संकोच के, किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जाए, वह सात्विक माना जाता है.
यज्ञ, दान और तपस्या के कर्मों को कभी त्यागना नहीं चाहिए,उन्हें हमेशा सम्पत्र करना चाहिए..!!
हमेशा दूसरों के कल्याण को ध्यान में रखकर अपना काम करें
“ इतिहास कहता है कि कल सुख था,विज्ञान कहता है कि कल सुख होगा,लेकिन धर्म कहता है, अगर मन सच्चा औरदिल अच्छा हो तो हर रोज सुख होगा…!!
जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझ में देखता है उसके लिए ना मैं कभी अदृश्य होता हूं और ना वह मेरे लिए कभी अदृश्य होता है।
ईश्वर, ब्राह्मणों, गुरु, माता-पिता जैसे गुरुजनोंकी पूजा करना तथा पवित्रता, सरलता,ब्रह्मचर्य और अहिंसा ही शारीरिक तपस्या है।
~ जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।
“ एक अनुशासित व्यक्ति हीअपना तथा समाज व देश का विकास कर सकता है…!!!
जीवन का आनंद ना तो भूतकाल में है और ना भविष्यकाल में। बल्कि जीवन तो बस वर्तमान को जीने में है।
गलतियां ढूंढना गलत नही है, बस शुरुआत खुद से होनी चाहिए।
बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए,बिना आशक्ति के काम करने चाहिए..!!
~ यह सृष्टि कर्म क्षेत्र है, बिना कर्म किये यहाँ कुछ भी हासिल नहीं हो सकता।
“दूसरों पर भरोसा करना अच्छा है, लेकिन कभी-कभी हमें भरोसा करने में सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि कभी-कभी आपके अपने दांत ही आपकी जिव्हा को काट लेते हैं.”
मन जहां भी भटकता है, बेचैन और बिना संतुष्टि की खोज में फैल जाता है, उसे भीतर ले जाता है; इसे स्वयं में आराम करने के लिए प्रशिक्षित करें।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जो जैसा विश्वास करता है वैसा ही बन जाता है।
फल की लालसा छोड़कर कर्म करनेवाला पुरुष ही अपने जीवनको सफल बनाता है।
“ हो सकता हैहर दिन अच्छा ना हो,लेकिन हर दिन में कुछअच्छा जरूर होता है..!!!
~ अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर दो, यही सबसे बड़ा सहारा है। जो कोई भी इस सहारे को पहचान गया है वह डर, चिंता और दुखों से आजाद रहता है।
“ न भूतकाल और न हीभविष्य की चिंता किये बिनाप्रत्येक व्यक्ति वर्तमानमें जीकर सफल हो सकता है…!!!
यह सृष्टि कर्म क्षेत्र है, बिना कर्म किये यहाँ कुछ भी हासिल नहीं हो सकता.
जिस प्रकार अग्नि स्वर्ण को परखती है,उसी प्रकार संकट वीर पुरुषों को..!!
वासना, क्रोध और लालच ये नर्क के तीन द्वार हैं
एक अनुशासित व्यक्ति ही अपना, अपने समाज का, अपने देश का विकास कर सकता हैं।
जिस मनुष्य के पास सब्र की ताकत है उस मनुष्य की ताकत का कोई मुकाबला नहीं कर सकता.
“ जितना हो सके खामोश रहना ही अच्छा है ,क्योंकि सबसे ज्यादा गुनाह इंसानसे उसकी जुबान ही करवाती है..!!!
जो लोग अपने मन को नियंत्रित नहीं करते हैं, उनके लिए वह शत्रु के समान काम करता है।
जैसे वे मेरे पास आते हैं, वैसे ही मैं उन्हें ग्रहण करता हूं। सभी पथ, अर्जुन, मेरी ओर ले जाते हैं।
जिस प्रकार अग्नि सोने को परखता है उसी प्रकार संकट वीर पुरुष को
“धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्र समवेता युयुत्सव:। मामका: पांडवाश्चैव किमकुर्वत संजय।।”
कोई भी इंसान जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मो से महान बनता है.
“ जो मन को नियंत्रित नही करते है, उनके लिए वह शत्रुके सामान कार्य करता है…!!
कौन क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है और क्यों कर रहा है। इन सब से आप जितना दूर रहेंगे उतना ही आप खुश रहेंगे।
धरती पे जिस तरह मौसम मे बदलव आता जाता रहता है उसी तरह जीवन मे सुख-दुःख आते रहते है
मन की शांति से बढ़कर इस संसार में कोई भी संपत्ति नहीं है।
जो लोग ऊर्जा की कमी या कार्रवाई से परहेज करते हैं, वे नहीं हैं जो बिना इनाम की उम्मीद के काम करते हैं जो ध्यान के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
इंसान के परिचय की सुरूवात भले ही उसके चेहरे से होती होगी लेकिन उसकी सम्पुर्ण पहचान तो उसके वाणी से हि होती है
जिन्दगी मे दो लोगो का होना बहुत जरूरी है …एक कृष्ण जो ना लड़े फिर भी जीत पक्की कर दे ,दूसरा कर्ण जो हार सामने हो फिर भी साथ ना छोड़े ।
जो हुआ वह अच्छे के लिए हुआ है, जो हो रहा है वह भी अच्छे के लिए ही हो रहा है, और जो होगा वह भी अच्छे के लिए ही होगा।
~ जो पुरुष सुख तथा दुख में विचलित नहीं होता और इन दोनों में समभाव रहता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है।
~ मेरा तेरा, छोटा बड़ा, अपना पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है और तुम सबके हो।
मनुष्य के दुख का कारण उसका मोह ही है वो जितना मोह करेगा उतना कष्ट भी भोगेगा.
जिसने मन को जीत लिया है, उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है। किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए उसका मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा।
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता,ना इस लोक में है ना ही कहीं और..!!
प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को क्रोध और लोभ त्याग देना चाहिए,क्योंकि इससे आत्मा का पतन होता है..!!
मनुष्य के दुख का कारण उसका मोह ही है वो जितना मोह करेगा उतना कष्ट भी भोगेगा
निष्काम कर्म की एक ही है परिभाषा तू बस कर्म कर मत रखो फल की आशा.
हे अर्जुन! मन अशांत है, और इसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
हमारी गलती अंतिम वास्तविकता के लिए यह ले जा रहा है ,जैसे सपने देखने वाला यह सोचता है की उसकेसपने के अलावा और कुछ भी सत्य नही है ।
मौन सबसे अच्छा उत्तर है किसी ऐसे व्यक्ति के लिए, जो आपके शब्दों को महत्व नही देता है।
शस्त्र इस आत्मा को काट नही सकते,अग्नि इसको जला नही सकती,जल इसको गीला नही कर सकता,और वायु इसे सुखा नही सकती..!!
ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है वही सही मायने में देखता है
“ विपत्ति में धैर्य , वैभव में दयाऔर संकट में सहनशीलता हीश्रेष्ठ व्यक्तियों के लक्षण है…!!!
जो मन को नियंत्रित नहीं करते,उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है..!!
मानव कल्याण ही भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य है,इसलिए मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करतेसमय मानव कल्याण को प्राथमिकता देना चाहिए।
फल कि अभिलाशा छोड कर कर्म करने वाला पुरुष अपने जीवन को सफल बनाता है
अच्छे कर्म करने के बावजूद भी लोग केवल आपकी बुराइयाँ ही याद रखेंगे. इसलिए लोग क्या कहते है इस पर ध्यान मत दो. अपने कार्य करते रहो ।
समय जब न्याय करता है, तब गवाहों की आवश्यकता नहीं पडती हैं।
तुम खाली हाथ आए हो और खाली हाथ चले जाओगे।
“ गीता में कहा गया है कोई भीअपने कर्म से भाग नहीं सकताकर्म का फल तो भुगतना ही पड़ता है…!!
जो व्यक्ति अपने कर्म फल के प्रति अनासक्त हैं और जो अपने कर्तव्य का पालन करता है वही असली सन्यासी और योगी हैं।
“ जब मनुष्य अपने जीवन में किसीएक चुनौती को जीवन का केंद्र मान लेता हैं,तब वो जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाता….!!
वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और ‘मैं’ और ‘मेरा’ की लालसा से मुक्त हो जाता है उसे शांति प्राप्त होती है.
“ हे अर्जन हम दोनो ने कईजन्म लिए है मुझे याद हैलेकिन तुम्हे नही…!!
फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है।
तुम्हें कर्म करने का अधिकार है लेकिन कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। इसलिए कर्मफल के प्रति आसक्त हुए बिना अपना कर्म करें।
“ नकारात्मक विचारों का आना तय है,परंतु यह आप पर निर्भर करता है,कि आप उन्हें कितना महत्व देते हैं…!!
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति को प्रसन्नता ना इस लोक में मिलती है ना ही कहीं और।