Miss School Life Status In Hindi : होमवर्क ना कर पाने का डर भी ख़ुशी में बदल जाता था, जब पता लगता था आज किसी दोस्त ने भी होमवर्क नहीं किया है। वो स्कूल का दरवाज़ा वो लोहे का दरवाज़ा था या फिर जन्नत का दरवाज़ा।
वो स्कूल का दरवाज़ा वो लोहे का दरवाज़ा था या फिर जन्नत का दरवाज़ा।
स्कूल की दोस्ती में एक बात ख़ास होती ,है इसमें पैसों की कोई अहमियत नहीं होती दोस्ती ही सबसे ज्यादा कीमती होती है।
बस एक दिन लौटा दो वो दोस्तों का साथ वो छोटी क्लास वो मैदान की घांस।
एक ज़िद की है दिल से कि फिर से स्कूल जाना चाहता हूँ ज़िम्मेदारी को रख कर परे, सिर्फ बस्ते का बोझ उठाना चाहता हूँ
होमवर्क ना कर पाने का डर भी ख़ुशी में बदल जाता था, जब पता लगता था आज किसी दोस्त ने भी होमवर्क नहीं किया है।
बहाने बनाते थे स्कूल ना जाने के अब सोचता हूँ ना जाने क्यों बहाने बनाते थे।
स्कूल के भी क्या खूब दिन हुआ करते थे, तुझे इम्प्रेस करने के चक्कर में स्वेटर नहीं पहना करते थे।
दिन तो स्कूल में काटते थे, अब तो रातें काटना भी भारी पड़ रहा है।
वक़्त भी क्या क्या दिखता है स्कूल के दिनों मैं स्कूल से परेशान थे अब स्कूल की यादों से परेशान है ।।
क्यों छुट्टी वाले दिन करार नहीं आता क्यों वो स्कूल वाला रविवार नहीं आता
भले कुछ इम्तेहानों में Fail हो जाएं पर दोस्ती के इम्तेहान में स्कूल में कोई Fail नहीं होता था।
गर्मियां तो आज भी आती है पहले की तरह बस अब स्कूल के दिनों की तरह गर्मियों की छुट्टिया नहीं आती पहले की तरह।
Home Work पूरा ना होतो Teacher से लगता है डर,जल्दी से छुट्टी हो जाएँ औरमैं Bag उठाकर चला जाऊँ घर.
हज़ारों दोस्तों का आना जाना हुआ, पर स्कूल के दोस्तों जैसा दोस्त मिले ज़माना हुआ।
दिन तो स्कूल में काटते थे, अब तो रातें काटना भी भारी पड़ रहा है।
यह स्कूल की दुनिया प्यार से पढ़ाती है,दिल में बसने वाले दोस्तों से मिलाती है,लंच बॉक्स शेयर करके खुश रहना सिखाती हैवह स्कूल की दुनिया बड़ी याद आती है.
स्कून के दिनों में सबसे बेहतर दिन वो होता था जब हर क्लास का पहला दिन होता था।
वही अच्छे थे स्कूल के इम्तेहान ये ज़िन्दगी के इम्तेहान में सवाल बहुत कठिन आते हैं।
याद आ गए आज वो स्याही से रंगे हाथ , क्या दिन थे वो जब करते थे लंच दोस्तो के साथ ।।
स्कूल में कुछ तो बात थी तभी स्कूल की बातें स्कूल के बाद भी याद आती है।
बचपन गुजर गया पूरा स्कूल मैं जवानी की अब कॉलेज मैं बारी है हमे पता है ये सब भी तो जरूरी है क्या यही हम लोगो की ज़िंदगानी है ।।
वो जो जाते हैं स्कूल तक उन रास्तों से हम जुदा हो गये आज अपने स्कूल से हम विदा हो गये!!
स्कूल में पढ़ा क्या था सही से याद नहीं पर स्कूल का हर एक दिन अच्छे से याद है।
पहले स्कूल एक बहाना था रोज़ मिलने का आज दफ्तर एक बहाना है कभी ना मिलने का।
बहाने बनाते थे स्कूल ना जाने के अब सोचता हूँ ना जाने क्यों बहाने बनाते थे।
स्कूल की दोस्ती बड़ी ही ख़ास होती है,स्कूल खत्म होने के बाद भी वो साथ होती है.
वहाँ मार्ग की रुकावट नहीं बल्कि वहां से उत्पन्न एक फूल हैं जहाँ से जीवन में शिक्षा की शुरुआत हुई वह हमारा स्कूल है
जिंदगी का हर दुःख-दर्द भूल जाना चाहता हूँ,फिर से मम्मी के साथ स्कूल जाना चाहता हूँ.
ना अश्क़ से वाकिफ थे, ना ही इश्क़ के काबिल हुए हैं… फिर भी ऐ ग़म, हम तेरी स्कूल में दाखिल हुए हैं…
सफल हो जाओ या असफल हो जाओउदासी तो सबके हिस्से में आती है,स्कूल में दोस्त जैसे हँसाते थेवो हँसी अब चेहरे पर नहीं आती है.
स्कूल सिर्फ विद्या का घर नहीं होते वो हर बच्चे का दूसरा घर होता है।
बचपने की वजह से स्कूल खराब लगता था, अगर तब दिमाग होता तो छुट्टी के दिन भी स्कूल चले जाते।
बचपने की वजह से स्कूल खराब लगता था, अगर तब दिमाग होता तो छुट्टी के दिन भी स्कूल चले जाते।
चलो अपनी मासूमियत हम ढूढ़ कर लाते हैं चलो हम फिर से School की ओर जाते हैं.
खेलते-खेलते लड़ाई और खेल-खेल में दोस्ती ऐसा कारनाम सिर्फ स्कूल के दोस्तों में हुआ करता था।
जब स्कूल में शिक्षक किसी student को उसके पूरे नाम से पुकारता है तो समझो इसका मतलब कुछ बबाल है ।।
हज़ारों दोस्तों का आना जाना हुआ, पर स्कूल के दोस्तों जैसा दोस्त मिले ज़माना हुआ।
बचपन से स्कूल तक शौक था अच्छे इंसान बनने का स्कूल खत्म और शौक भी ख़त्म ।।
हर रोज बस मौज होती थी समंझ नहीं आता वो स्कूल था या जन्नत।
ज़िन्दगी के सारे दुख दर्द आज भूल जाते है, चलो फिर से आज बचपन वाले स्कूल जाते है !!
सोचा है तो पूरा होगा ;बस शुरू कही से करना होगा,तुझे दुनिया से बाद में ;पहले खुद से लड़ना होगा।
बस एक बार और मिल जाएंगे जो मुझे स्कूल के दिन वापस तो इस बार स्कूल के दिन काटूंगा नहीं खुल कर जियूँगा।
मुस्कुरा कर रह जाता हूँ जब भी याद आती है वो मस्ती और जब भी याद आती है School की वो पुरानी बस्ती.
आसमान मैं जितनी काली घटा छआई है हमने भी टीचर से उतनी मार खायी है सुधर जाओ सब कहते थे मगर ये दिल को सिर्फ शरारत यही भाती थी ।।
स्कून के दिनों में सबसे बेहतर दिन वो होता था जब हर क्लास का पहला दिन होता था।
एक वक़्त था जब स्कूल न जाने के लिए झूठ-मूठ सोया करते थे, और आज स्कूल के दिनों को याद कर रोया करते हैं।
हर रोज बस मौज होती थी समंझ नहीं आता वो स्कूल था या जन्नत।
स्कूल हमेशा मैं देर से पहुँचता था, अगर पता होता की स्कूल के दिन इतनी जल्दी निकल जाएंगे तो हर दिन समय से पहले पहुंच जाता।
कभी हस्ते हस्ते रो जाता हूं मैं आज भी याद करके स्कूल के वो मस्ती वाले दिन जिमेदारी नही कोई कंधो पर कितने हसीन थे वो स्कूल के दिन !!
एक छोटे से कमरे में हम चालीस बच्चे रहते थे, वो मेरा दूसरा घर स्कूल थोड़ा छोटा था पर कमाल का था।
जिंदगी की रोज की परेशानियों से कहीं अच्छे थे वो स्कूल के दिन भले हम पर बंदिशें थी, फिर भी बड़े अच्छे थे वो स्कूल के दिन.
मुँह मासूम सा किताबों के पीछे रहता था, पर उसे पढ़ने के लिए नहीं मास्टर जी से छुप कर बाते करने के लिए।
खेल खेलने के लिए खेल इतने ज़रूरी नहीं थे बस दोस्त ज़रूरी थे।
होती नही खबर कुछ सुबह की, ना ही शाम का ठिकाना था, थक हार के स्कूल से आना फिर भी खेलने तो जरुर जाना था।।
जब पढ़ते थे तो स्कूल से आजाद होना चाहते थे अब आजाद हुए तो फिर से वही ज़िन्दगी जीना चाहते है ।।
पढ़ने, खेलने और मस्ती करने का जुनून था,सच कहूँ तो स्कूल की जिंदगी में ही सुकून था.
फिर से काश वही तक़दीर मिल जाये ज़िन्दगी के वो सारे हसी पल मिल जाये बेठे चल आज फिर से क्लास की लास्ट बेंच पर क्या पता शायद वो पुराने दोस्त मिल जाये ।।
हर पल बस मस्ती और खेलने का जज़्बा था, तब गावं का वो छोटा सा स्कूल ही हमारा क़स्बा था।
पहले स्कूल के वक़्त आराम था इसलिए छुट्टी के दिनों में भागदौड़ किया करते थे, आज छुट्टी के मायने आराम करने तक ही रह गए हैं।
ख़ुशी खिलौना खेलने से नही मिलती है, ख़ुशी स्कूल के दोस्तों के साथ खेलने से मिलती है।
उम्र बढ़ गई है पर दिल आज भी पुरानी यादों के पन्नों में स्कूल के दिन ही ढूंढता है।
अजीब बात थी ये स्कूल के समय की सोमवार बीतते सदियाँ लग जाती थी और रविवार पालख झपकते ही ख़त्म हो जाता था।
पढ़ने लिखने में ध्यान कम था ज़रा, पर स्कूल ने मुझे दोस्ती का मतलब पढ़ाया है।
स्कूल का पहला दिन और आखिरी दिन एक जैसा था, दोनों बार आँखों में आंसू थे पर दोनों बार रोने की वजह अलग थी।
खेल खेलने के लिए खेल इतने ज़रूरी नहीं थे बस दोस्त ज़रूरी थे।
अजीब बात थी ये स्कूल के समय की सोमवार बीतते सदियाँ लग जाती थी और रविवार पालख झपकते ही ख़त्म हो जाता था।
सपने है आंखों मैं बड़े बड़े दिल मैं मा का बेशुमार प्यार निकल पड़े है अपनी ज़िंदगी बदलने लेकर ऊपर वाले का नाम ।।
याद है मुझे उस गर्व का एहसान होना एक रात पहले पढ़ कर भी इम्तेहानों में पास होना।
स्कूल सिर्फ विद्या का घर नहीं होते वो हर बच्चे का दूसरा घर होता है।
किताब हाथों में पर ध्यान दोस्तों की बातों में।
इश्क़ के हिज्जे भी जो न जानें वो हैं इश्क़ के दावेदारजैसे ग़ज़लें रट कर गाते हैं बच्चे स्कूल मेंअमीक़ हनफ़ी
उम्र बढ़ गई है पर दिल आज भी पुरानी यादों के पन्नों में स्कूल के दिन ही ढूंढता है।